आज के कबीर आगे आएं ..

 वास्त्विक सत्य (अब रूपक बदलने होंगे)

कबीर दास एक बार स्नान करने गये वहीं पर कुछ ब्राह्मण अपने पूर्वजों को पानी दे रहे थे,
तब कबीर ने भी स्नान किया और पानी देने लगे,
इस पर सभी ब्राह्मण हँसने लगे और कहने लगे कि
"कबीर तू तो इन सब में विश्वास नहीं करता , हमारा विरोध करता है,"
और आज वही कार्य तुम भी कर रहे हो ?,, जो हम कर रहे हैं ।
कबीर ने कहा," नहीं ,मैं तो अपने बगीचे में पानी दे रहा हूँ , "
कबीर की इस बात पर ब्राह्मण लोग हँसने लगे और कबीर से कहने लगे कि "कबीर जी तुम बौरा गये हो , तुम पानी इस तलाब में दे रहे हो तो बगीचे में कैसे पहुँच जायेगा ?
कबीर ने कहा जब तुम्हारा दिया पानी इस लोक से पितरलोक चला जा सकता है तुम्हारे पूर्वजों के पास ...
...तो मेरा बगीचा तो इसी लोक में है तो वहाँ कैसे नहीं जा सकता है,, सभी ब्राह्मणों का सिर नीचे हो गया ।
देना है पानी,भोजन,कपडा़ तो अपने जीवित माँ बाप को दो... उनके जाने के बाद तुम जो भी देना चाहोगे... पाखंडियों...
वास्त्विक सत्य:-
(अब)
एक अर्थशास्त्री ने गरीब व्यक्ति से पूछा भाई खरीददारी का बिल लेकर क्या करोगे तुम्हे ज्यादा पैसा देना पड़ेगा।
बेचारे मजदूर ने सुना सुनाया उत्तर दे दिया... देश के विकास से मेरा भला होगा, सार्वजनिक सुविधाऐं बढ़ेगी।
अर्थशास्त्री हँसा, बोला डकैतों और देशद्रोहियों के भरोसे जो शासन प्रणाली चल रही है उनको दी गई तुम्हारी अंजुली भर टैक्स से तुम्हारी पीढ़ियों को भी यूं ही एड़िया रगड़ कर मरते रहना है।
भूपति आर्य, Vijay Kumar Sharma and 6 others
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