सेकुलर और सांप्रदायिक की असली परिभाषा...

देश में गोडसे के समर्थन में एक बड़ी जमात खड़ी हो गई है । कुछ लोग कहते हैं इनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का केस चलाया जाना चाहिए । एक ऐसी जमात भी खड़ी है जो महिषासुर  का समर्थन कर रही है। कुछ लोग कह रहे हैं कि इस बार रावण जलाया नहीं जाएगा बाढ़ में जल समाधि लेगा। एक दूसरा वर्ग ऐसा भी है जो रावण के जलाए जाने पर एफ आई आर दर्ज करवाएगा। दुराचार और कुतर्कों की इस बाढ़ में राम भी जल समाधि ले लेता है। राक्षस वे हैं जो मनुष्य जाति की सांस्कृतिक विविधता को नष्ट करने पर तुले है। इन राक्षसों का शिखर नेतृत्व रावण है। शुद्र वे हैं जो महज जिंदा रहने के लिए इन राक्षसों के साथ हो गए, सत्ता की प्यास में या मूर्खतावश सेक्युलरिज्म का आवरण ओढ़े हैं ये मक्कार अपना चेहरा दर्पण में भी नही देखना चाहते। सांस्कृतिक प्रतीकों का अपमान करना अपनी ही ठोकर में अपना सिर रखने की कोशिश है। सेक्युलरों की यही पहचान है। राक्षसगण इनके साथ मिलकर ही सांस्कृतिक विविधता पर हमला करते हैं।

आज की युवापीढ़ी के लिए रामायण का वैज्ञानिक रूपांतरण...

सनातन धर्म को आधुनिक युवा मन तक पहुंचाने के लिए शास्त्रों का युगानुकूल अनुवाद करना होगा। आइये एक उदाहरण से समझते हैं...
रामचरितमानस में सती जब शिव को देखती है कि वे वन में स्त्री के लिए विलाप करते राम को प्रणाम कर रहे हैं तो सती को भरोसा नही होता कि एक साधारण बिलखता युवक शिव के प्रणाम योग्य है।
सीता का रूप धर कर जब सती राम की परीक्षा लेती है तो शिव सती को साथ न बैठा कर सामने बैठाने लगते हैं क्यों कि उन्होंने गुरुपत्नी (सीता) का वेश धारण किया।
दाम्पत्य की इस दुविधा का अंत इस प्रकार हुआ कि सती बिना निमंत्रण के पिता के घर जाती है और पति के अपमान से आहत होकर वह यज्ञ शाला में अपने प्राण त्याग देती है। कथा है कि पार्वती रूप में 50000 वर्ष तपस्या करके वह शिव का पुनः वरण करती है।
बालकाण्ड के इस प्रसंग के निहित अर्थ आज की फास्टकुड़, यूज एंड थ्रो युवा पीढी को कैसे समझाओगे? आज के युवा तो स्कूल टीचर से शादियां तक करने लगे हैं।
दरअसल उस काल में पिता की पहचान उतनी कीमती न थी जितनी गुरु की थी। आज भी सिंगल मदर के सम्मान के लिए सरकार ने पिता के नाम की अनिवार्यता हटा दी। पर हर नागरिक को अपनी सांस्कृतिक विरासत कहां से मिली बताना तो होगा। समय बदल रहा है। अब भविष्य में स्त्रियों को अपनी सन्तान के गुरु का नाम बताना होगा।
अगला जन्म और 50000 वर्ष भी युवापीढ़ी के लिए बेसिरपैर की बात है। तो इंस्टेंट सॉल्यूशन क्या हो?
रामायण के इस रूपक को अब आधुनिक भाषा में ऐसे कहिए...
तकनीक आज इतनी विकसित हो चुकी है कि मानो कोई स्त्री अपनी सास के साथ ब्यूटीपार्लर में जाकर गर्दन एक्सचेंज करवा कर आ जाए, एक के धड़ पर दूसरी की गर्दन। तो बताइए घर पर बैठे पिता पुत्र का दाम्पत्य निर्वाह कैसे होगा? अब नई दशा में कौन स्त्री किस की पत्नी है? (दामाद और ससुर भी ऐसा कर सकते हैं)
यह पहेली हर उस व्यक्ति के लिए है जो अध्यात्म, पारलौकिक जगत, मल्टीपल डाइमेंशन ऑफ एग्जिस्टेन्स आदि के संदर्भ में चेतना विकसित करना चाहता है। पृथ्वी पर प्रजनन पर्यावरण और योन व्यवहार की सम्यक अनुभूति बिना जीवन चक्र से मुक्ति सम्भव नही है। अच्छे बुरे कर्मभोगों के लिए उसे इसी गुरुत्वीय क्षेत्र में बारबार जन्म लेना होता है। इस द्वंद्वात्मक अस्तित्व से मुक्ति सहज भी है और कठिन भी।
रामायण चेतना के विकास का शुद्ध विज्ञान है।
सुरेश 9929515246

सावधान ! मीडिया न शिक्षित करना चाहता है न मनोरंजन करना चाहता है

समाचारों के साथ शरारत करना, समाचारों की प्राथमिकता बदलकर सम्भव है। समाचारों के लक्षित हिस्से को जानबूझ कर आक्रामक ढ़ंग से पेश करना समाचारों के साथ शरारत करने का दूसरा ढंग है। मीडिया के जरिये यह बेशर्म हरकत सत्ता के प्यासे लोग करते हैं।

मीडिया और इंटरनेट से उम्मीद की जानी चाहिए कि यह घर घर शिक्षा पहुँचाए, अपनी बोर्डरलेस और बाउंड्रीलेस पहूँच से यह अकल्पनीय तरीके से कर सकता है। पर हालात इसके विपरीत है। अमेरिका में आज हर ग्रेजुएट पर 27000 डॉलर शिक्षा लोन है।

मीडिया और इंटरनेट से ओर्गेनाइज्ड सेक्टर तो भय, विरोध और फूहड़पन फैला रहा है।भूखे नंगों को टीवी पर नजारे दिखा कर छीन लेना इनके लिए वैसे ही है जैसे गली में बच्चे कुत्तों को रोटी ऊँची लटका कर उनसे नाचने का खेल देखते हैं।

फिर जब सैंकडों लोग इनको देखते हैं और आस करते हैं कि कुछ खाने को मिल जाए तो एक टुकड़ा फैंक कर उसके लिए उन भूखे नंगों को लड़ते देखना इनको अपार सुख से सरोबार कर देता है।
 
टेक्नोलोजी से जोड़कर नागरिकों से किस तरह की अपेक्षा की जा रही है अभी कहना मुश्किल है। एक छलावा पहले भी हुआ है... पहिये के आविषकार के समय कहा गया था कि ये हर भूखे तक अनाज पहुँचाएगा। पर रोटी चाहने वालों के लिए बारुद पहूँचता है।

पूँजीवादी नजरिये की इस सरकार से भारत की क्या तस्वीर बनती है ये तो भविष्य ही बताएगा। भारत में शिक्षित पैदा होंगे या शिक्षा के कर्जदार आगामी पाँच साल में यह तो समय ही बताएगा।

स्किल डवलपमेण्ट के जरिये 5-6 हजार रूपया महीने कमा सकने वाली मजदूरों की फोज खड़ी होगी या विवेक शक्ति के विकास के लिए विश्वविद्यालयों में स्वतंत्र चिंतन को भी प्रोत्साहन मिलेगा कहना मुश्किल है।

Your child is just an industrial fit, you are shaping him/her just for slavery.

👉अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार (ILO Classification) लगभग 5000 प्रकार से लोग जीविका कमाते हैं।
👉कोई राष्ट्रपति, अंतरिक्ष यात्री, गायक, किसान आदि कुछ भी बनना चुन सकता है।
👉स्कूल से लेकर कॉलेज तक बच्चा इन पांच हजार सुरंगों में से किसी एक सुरंग में फंसा दिया जाता है।
👉वह अपने फील्ड का ख्याति प्राप्त विशेषज्ञ बन जाता है या निचले दर्जे पर गुलाम बना रह कर जीवन काटना नीयति मान लेता है।
👉दुनिया की अधिकांश आबादी चूहों के लिए बनाए गए लगभग 5000 शाखाओं के इस ट्रेप में फंस कर मर जाती है।
👉कुछ महिमा मंडित होकर मरते हैं अधिकांश गुमनाम मर जाते हैं।
👉धरती पर रची गई इस माया नागरी में specialized institutions बुद्धिमान लोगों को आज्ञाकारी रोबोटिक लाइफ चुनने के लिए मजबूर कर देते हैं।
👉स्कूल से कॉलेज के सफर तक व्यक्ति निम्न साक्षर से उच्च साक्षर मात्र होता है।
👉 प्रायोजक उद्योगपतियों  के  आदेश  के अनुसार उनको काम करना होता है।
👉इन प्रायोजित इंस्टीट्यूशन्स से बच कर कुछ लोग मुख्यधारा से बाहर सोचने लगें तो वे व्यवस्था के लिए चुनोती बन सकते हैं।
👉 आपका मन इस विराट जाल से बाहर झाँक सकता है।
👉चेतना के उच्च स्तरों को छू सकने में आप सक्षम हो।
👉मैं शिक्षा के लिए एक नए द्वार में प्रवेश करने में आपकी मदद कर सकता हूँ। निमंत्रण है---

Suresh K Sharma
Life Coach & Counsellor 09929515246