Synchronize Yourself with Life...

लाइफ कॉचिंग एक सम्मानजनक पेशा है। गाइडेंस और कॉंसलिंग आज समाज की आवश्यकता बन गया है। लोगों में हजारों तरह की आस्था होती है जिनके सहारे वे अपना जीवन जीते हैं। जितना बन पड़ता है वे वैज्ञानिक तरीकों से निर्णय लेने की कोशिश करते हैं। परंतु आज का तेजी से बदलता सामाजिक पर्यावरण न आस्थाओं को टिकने दे रहा है और ना कोई वैज्ञानिक प्रणाली मददगार साबित हो रही है। सूचनाओं के इस विराट जंजाल में किसी भी युवा को एक सहायक की आवश्यकता हो सकती है। लाइफ कॉच, गाइड या कॉंसलर के रूप में जो इस फील्ड में कैरियर बनाना चाहता है उनको ट्रेनिंग देना मारा कार्यक्षेत्र है। यह इक्कीसवीं सदी मनोविज्ञान की सदी है। जो इस विषय को जितनी जल्दी अपना लेगा वह समाज में उतनी ही जल्दी अपनी सार्थक भूमिका निभाना आरम्भ कर देगा।http://supportinghands.blogspot.in/2014/05/support-movement-psychology-is-subject.html सुरेश कुमार शर्मा 9929515246

लाइफ कॉचिंग व्यवसाय में कैरियर बनाने का यह सही समय है...

मार्गदर्शन और परामर्श
·         आप कौन हैं?
·         अपने बारे में आप क्या जानते हैं?
·         आप कैसा अनुभव कर रहे हैं?
·         आपके पास शक्तियाँ क्या है?
·         आपकी कमजोरियाँ क्या है?
·         क्या आप खुश हैं?
·         क्या आप अपनी अनचाही आदतों के कारण घुटन का अनुभव कर रहे हैं?
·         आप जैसा बनना चाहते हैं वैसे बन रहे हैं या कोई और जैसा चाह्ते हैं वैसा बन रहे हैं?
क्या आपको ये प्रश्न परेशान करते हैं? क्या आप अपने को जितना समझते हैं उससे अधिक जानना चाहते हैं? जिससे आप वह अधिकतम कर सकें जिसके लिए आपको प्रकृति ने चुना है? क्या आप इसके लिए पहला कदम उठाना चाहते हैं? इसके लिए आपको अपने अनोखे होने को समझना होगा। आपको अपने अतीत, अपनी शक्तियाँ, अपनी कमजोरियाँ और स्वयं की इच्छाओं को पहचानना होगा।
ह्म में से ज्यादातर मित्र अपने को वैसा जानते हैं जैसा कि दूसरों ने उनको बताया है। ज्यादातर मित्र अपने परिचय में वह बताते हैं जो उन्होंने अपने घर, समाज से सुना है। वे अपने बारे में अपनी आंतरिक आकाँक्षाओं से परिचय नही कराते। ज्यादातर लोग बताते हैं अपना हूनर, शिक्षा, घराना आदि। क्या जीवन इतना ही है जो आपको दूसरे के लगातार प्रयासों से मिला है? क्या आपकी अपनी आकाँक्षा, सपने, रुचि सब आपने भुला दिया? या उम्र बढ़ने के साथ खोते जा रहे हो? क्या आप केवल इस बात से आनन्द मनाते हो कि आपने क्या उपलब्धियाँ पाई, सफलता किसमें मिली। क्या आत्मसम्मान, आंतरिक आनन्द और संतुष्टि के आधार पर आप अपने जीवन का माप नही करते? कुछ जानकारियों के अलावा, कुछ हूनर के अलावा क्या आप का अपना कोई और अस्तित्व नही है?
क्या आप बदलाव चाहते हैं? तो समझें कि आपके आंतरिक जीवन और बाह्य परिचय में संतुलन कैसे बनाया जा सकता है। समाज ने आपको केवल यह सिखाया है कि आप समाज के लिए कैसे फिट हो सकते हो। आप अपने अनुकूल समाज का निर्माण भले ही ना कर सकें पर अपने अनुकूल सामाजिक वातावरण की तलाश तो कर ही सकते हो। नीचे बने चक्र में आपके जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है। आप इन पहलुओं पर अपना पक्ष लिखें। जब डाक द्वारा या ईमेल से आपका सन्देश हमें मिलेगा तो आधे घण्टे का फ्री परामर्श चैटिंग द्वारा दिया जाएगा। इस में यह सम्भावना तलाशी जाएगी कि आप क्या हो सकते हैं और क्या पा सकते हैं।
इस चक्र में आप स्वयं को मानें और इसके दांते आपके जीवन के विभिन्न पहलू है। आप प्रत्येक पहलू पर सफलता और संतुष्टि के लिए 1 से 10 के बीच अंक दें। जितने अधिक संतुष्ट हैं आप उस शीर्षक को उतने ही अधिक अंक दें। 
आप किस पहलू पर अपने को सबसे अधिक कमजोर पाते हैं? उसमें किस तरह के बदलाव आप चाहते हैं व लिख कर भेजें।
इस चक्र में वह पहलू रेखाँकित करें जहाँ आजकल आपका अधिकतम समय, ऊर्जा, धन आदि खर्च रहा है।

आप इसमें अपनी आवश्यकता के अनुरूप बदलाव भी कर सकते हैं। तीन प्रकार के संकेत हर पहलू पर लिखें 1. आप उस पहलू पर कितने संतुष्ट हैं? अधिकतम तृप्ति पर अधिकतम अंक दें। असंतुष्ट हैं तो कम से कम अंक दें। 2. आप उस पहलू पर किस प्रकारे के परिवर्तन चाहते हैं वह स्पष्ट लिखें। 3. आप अधिकतम समय आप किस पहलू पर बिताने के लिए मजबूर हैं और किस पर अपना समय बिताने की खुशी होगी? 

यह एक व्यक्तिगत निमंत्रण भी है और उन लोगों के लिए सन्देश भी है कि अगर आप लाइफ कॉच के रूप में कैरियर अपनाते हैं तो किस प्रकार के कार्य करने होंगे... सुरेश कुमार शर्मा 9929515246

 

Do you want to be a real teacher?

" शिक्षक की भूमिका "
शिक्षक बुनियादी रुप से इस जगत में सबसे बड़ा विद्रोही व्यक्ति होना चाहिए । तब वह पीढ़ियों को आगे ले जायेगा । और शिक्षक सबसे बड़ा दकियानूस है, सबसे बड़ा ट्रेडीशनलिस्ट वही है, वही दोहराये जाता है पुराने कचरे को । क्रांति शिक्षक में होती नहीं है । आपने सुना है कि कोई शिक्षक क्रांतिपूर्ण हो ? शिक्षक सबसे ज्यादा दकियानूस, सबसे ज्यादा आर्थोडॉक्स है, इसलिए शिक्षक सबसे खतरनाक है । समाज उससे हित नहीं पाता है अहित पाता है ।
शिक्षक होना चाहिए विद्रोही.......
कौन-सा विद्रोही ?
मकान में आग लगा दें आप, या कुछ और कर दें या जाकर ट्रेन उलट दें या बसों में आग लगा दें, मैं उनको नहीं कह रहा हूँ, गलती से वैसा न समझ लें।
मैं कह रहा हूँ कि हमारी जो वैल्यूज हैं उनके बाबत विद्रोह का रुख, विचार का रुख होना चाहिए कि यह मामला क्या है ।
जब आप एक बच्चे को कहते हैं कि तुम गधे हो तुम नासमझ हो, तुम बुद्धिहीन हो, देखो उस दूसरे को, वह कितना आगे है, तब आप विचार करें कि यह कितने दूर तक ठीक है और कितने दूर तक सच है ।
क्या दुनिया में दो आदमी एक जैसे हो सकते हैं ?
क्या यह संभव है कि जिसको आप गधा कह रहे हैं वह वैसा हो जायेगा जैसा कि आगे खड़ा है ? 
क्या यह आज तक संभव है ?
हर आदमी जैसा है, अपने जैसा है, दूसरे आदमी से कंपेरीजन का कोई सवाल ही नहीं। किसी दूसरे आदमी से उसकी कोई कंपेरीजन नहीं उसकी कोई तुलना नही।
एक छोटा कंकड़ है, वह छोटा कंकड़ है, एक बड़ा कंकड़ है, वह बड़ा कंकड़ है, एक छोटा पौधा है, वह छोटा पौधा है, एक बड़ा पौधा है, वह बड़ा पौधा है ! एक घास का फूल है, वह घास का फूल है, एक गुलाब का फूल है, वह गुलाब का फूल है ! प्रकृति का जहां तक संबंध है, घास के फूल पर प्रकृति नाराज नहीं है और गुलाब के फूल पर प्रसन्न नहीं है । घास के फूल को भी प्राण देती है उतनी खुशी से जितनी गुलाब के फूल को देती है।
और मनुष्य को हटा दें तो घास के फूल और गुलाब के फूल में कौन छोटा कौन बड़ा है ? कोई छोटा और बड़ा नहीं है ! घास का तिनका और बड़ा भरी चीड़ का दरख्त तो यह महान है और घास का तिनका छोटा है ? तो परमात्मा कभी का घास के तिनके को समाप्त कर देता और चीड़-चीड़ के दरख्त रह जाते दुनिया में ! नहीं लेकिन आदमी की वैल्यूज गलत हैं।
यह आप स्मरण रखें कि इस संबंध में मैं आपसे कुछ गहरी बात कहने का विचार रखता हूं। वह यह कि जब तक दुनिया में हम एक आदमी को दूसरे आदमी से कंपेयर करेंगे तब तक हम गलत रास्ते पर चलते रहेंगे। वह गलत रास्ता यह होगा कि हम हर आदमी में दूसरे आदमी जैसा बनने कि इच्छा पैदा करते हैं, जब कि कोई आदमी न तो दूसरे जैसा बना है और न बन सकता है ।
राम को मरे कितने दिन हो गये, या क्राइस्ट को मरे कितने दिन हो गये, दूसरा क्राइस्ट क्यों नहीं बन पाता और हजारो हजारो क्रिश्चियन कोशिश में तो चौबीस घंटे लगे हैं कि क्राइस्ट बन जायें। हजारों राम बनने की कोशिश में हैं, हजारों जैन महावीर, बुद्ध बनने की कोशिश में हैं, लेकिन बनते क्यों नहीं एकाध ? एकाध दूसरा क्राइस्ट और दूसरा महावीर क्यों नहीं पैदा होता ? क्या इससे आंख नहीं खुल सकती आपकी ?
मैं रामलीला के रामों की बात नहीं कह रहा हूं, जो रामलीला में बनते हैं राम । न आप यह समझ लें कि उनकी चर्चा कर रह हूं। वैसे तो कई लोग राम बन जाते हैं, कई लोग बुद्ध जैसे कपडे लपेट लेते हैं और बुद्ध बन जाते हैं । कई लोग महावीर जैसा कपड़ा लपेट लेते हैं या नंगा हो जाते हैं और महावीर बन जाते हैं । मैं उनकी बात नहीं कर रहा। वे सब रामलीला के राम हैं, उनको छोड़ दें।
लेकिन राम कोई दूसरा पैदा होता है ? यह आपको ज़िन्दगी में भी पता चलता है कि ठीक एक आदमी जैसा दूसरा आदमी कोई हो सकता है ? एक कंकड़ जैसा दूसरा कंकड़ भी पूरी पृथ्वी पर खोजना कठिन है-यहां हर चीज यूनिक है और हर चीज अद्वितीय है ।
और जब तक हम प्रत्येक कि अद्वितीय प्रतिभा को सम्मान नहीं देंगे तब तक दुनिया में प्रतियोगिता, रहेगी प्रतिस्पर्धा रहेगी, तब तक मारकाट रहेगी, तब तक दुनिया में हिंसा रहेगी, तब तक दुनिया में सब बेईमानी के उपाय से आदमी आगे होना चाहेगा, दूसरे जैसा होना चाहेगा ।
जब हर आदमी दूसरे जैसा होना चाहता है तो क्या होता है ?
फल यह होता है अगर एक बगीचे में सब फूलों का दिमाग फिर जाये या बड़े बड़े शिक्षक वहां पहुंच जायें और उनको समझायें कि देखो चमेली का फूल चंपा जैसा हो जाये, और चंपा का फूल जूही जैसा, क्योंकि देखो जूही कितनी सुंदर है, और सब फूलों में पागलपन आ जाए, और चंपा का फूल जूही जैसा, क्योंकि देखो, जूही कितनी सुंदर है, और सब फूलों में पागलपन आ जाए, हालांकि आ नहीं सकता ! क्योंकि आदमी से पागल - फूल नहीं है। आदमी से ज्यादा जड़ता उनमें नहीं है कि वे चक्कर में पड जायें।
शिक्षकों के उपदेशकों के, संन्यासियों के आदर्शवादियों के, साधुओं के चक्कर में कोई फूल नहीं पड़ेगा । लेकिन फिर भी समझ लें और कल्पना कर लें कि कोई आदमी जाये और समझाए उनको तथा वे चक्कर में आ जायें और चमेली का फूल चंपा का फूल होने लगे तो क्या होगा उस बगिया में ?
उस बगिया में फूल फिर पैदा नहीं हो सकते, उस बगिया में फिर पौधे मुरझा जायेंगे । क्यों क्योंकि चंपा लाख उपाय करे तो चमेली तो नहीं हो सकती, वह उसके स्वाभाव में नही है, वह उसके व्यक्तित्व में नहीं है, वह उसकी प्रकृति में नहीं है। चमेली तो चंपा हो ही नहीं सकती।
लेकिन क्या होगा ? चमेली चंपा होन की कोशिश में चमेली भी नहीं हो पाएगी । वह जो हो सकती थी उससे भी वंचित हो जाएगी ।
मनुष्य के साथ यह दुर्भाग्य हुआ है। सबसे बड़ा दुर्भाग्य और अभिशाप जो मनुष्य के साथ हुआ है वह यह कि हर आदमी किसी और जैसा होना चाह रहा है और कौन सिखा रहा है यह ? यह षड्यंत्र कौन कर रहा है ?
यह हजार हजार साल से शिक्षा कर रही है। वह कह रही है राम जैसे बनो, बुद्ध जैसे बनो यह अगर पुरानी तस्वीर फीकी पड़ गयी, तो गांधी जैसे बनो, विनोबा जैसे बनो।
किसी न किसी जैसा बनो लेकिन अपने जैसा बनने की भूल कभी न करना क्योंकि तुम तो बेकार पैदा हुए हो। असल में तो गांधी मतलब से पैदा हुए। भगवान ने भूल की जो आपको पैदा किया। क्योंकि अगर भगवान समझदार होता तो राम और बुद्ध ऐसे कोई दस पंद्रह आदमी के टाइप पैदा कर देता दुनिया में। या कि बहुत ही समझदार होता, जैसा कि सभी धर्मो के लोग बहुत ही समझदार होते हैं, तो फिर एक ही तरह के टाइप पैदा कर देता। फिर क्या होता ?
अगर दुनिया में समझ लें कि तीन अरब राम ही राम हैं तो कितनी देर चलेगी दुनिया ? पंद्रह मिनट ने स्युसाइड हो जायेगा । साऱी दुनिया आत्मघात कर लेगी । इतनी बोरडम पैदा होगी राम ही को देखने से। सब मर जाएगा,
कभी सोचा है ? 
सारी दुनिया में गुलाब ही गुलाब के फूल हो जायें और सारे पौधे गुलाब के फूल पैदा करने लगें तो क्या होगा ? फूल देखने लायक भी नहीं रह जायेंगे । उनकी तरफ आंख करने कि भी जरुरत नहीं रह जाएगी । यह व्यर्थ नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति का पाना व्यक्तित्व होता है। यह गौरवशाली बात है कि आप किसी दूसरे जैसे नहीं हैं और कंपेरिज़न, कि कोई ऊंचा है कोई नीचा है, नासमझी कि बात है।
कोई ऊंचा और नीचा नहीं है-प्रत्येक है ! प्रत्येक व्यक्ति अपनी जगह है और प्रत्येक व्यक्ति दूसरा अपनी जगह पर। नीचे ऊंचे की बात गलत है। सब तरह का वैल्युएशन गलत है। लेकिन हम यह सिखाते रहे हैं।
विद्रोह से मेरा मतलब है, इस तरह की सारी बातों पर विचार, इस तरह की सारी बातों पर विवेक, इस तरह की एक एक बात को देखना की मैं क्या सिखा रहा हूं इन बच्चों को। जहर तो नहीं पिला रहा हूं ?

बड़े प्रेम से भी जहर पिलाया जा सकता है 
और बड़े प्रेम से मां-बाप और शिक्षक 
जहर पिलाते रहे हैं, 
लेकिन यह टूटना चाहिए। “ 
"Osho"

Future Teachers...

भविष्य का शिक्षक ...
अगर आप ये लाइन पढ़ रहे हैं तो आप शायद जानते हैं कि कम्प्यूटर और इंटरनेट का उपयोग कैसे करते हैं। आप ब्राउजर काम में ले सकते हैं, किसी बताई गई साइट पर जा सकते हैं, अपनी रुचि की कोई साइट ढ़ूँढ सकते हैं। अगर आप काफी समय से ये कर रहे हो तो ये भी जानते हैं कि किसी जरूरत की सामग्री को कैसे डाउनलोड करते हैं। आप पीडीएफ फाइल के बारे में समझते हैं। कभी कोई पीडीएफ फाइल नही खुलती तो आपको पता है कि कम्प्यूटर में एक्रोबेट रीडर नही है। अगर आप शिक्षक हैं तो आप आज के जमाने की कक्षाओं में अपने छात्रों को पढ़ाने में अच्छी रुचि रख रहे होंगे।
शिक्षक प्रशिक्षण कक्षाओं में बी.एड. करने वाले प्रशिक्षुओं को किताबों के जरिये शिक्षण विधियाँ पढ़ाने से ज्यादा कीमती है कि उनको वह सब सिखाया जाए जो अभी अभी हमने इस चर्चा के आरम्भ में पढ़ा है। पर ज्यादातर बी.एड. कॉलेजों में इस तकनीक के प्रशिक्षण के लिए एक पीरियड भी मुश्किल से खर्च किया जा रहा है। शिक्षक आपस में चर्चा करते हैं कि कक्षा में उनके छात्र तकनीक के मामले में उनसे कई कदम आगे हैं।
एक शिक्षक के रूप में आपका सामना ऐसे हालातों से अक्सर होता होगा। उस समय आपकी प्रतिक्रिया क्या रहती है? सोचिये...
(भविष्य का छात्र तकनीकी रूप से जितना कुशल हो रहा है क्या कक्षा में शिक्षक उस बच्चे का सामना कर सकेंगे?)
  • अगर स्कूल प्रशासन स्कूल का रिकोर्ड कम्प्यूटर पर डालना अनिवार्य कर दे। बच्चों की हाजरी, अंक आदि कम्प्यूटर पर रखने के लिए आपसे सहयोग मांगा जाए तो आप क्या प्रतिक्रिया करेंगे?
  • बच्चों को ई मेल से गृहकार्य देने की स्थिति का आप कैसे सामना करेंगे? आपके नाम स्कूल एक ई मेल खोल दे और अनिवार्य कर दे कि आप सभी पत्राचार ई मेल से करेंगे तो क्या आप इसके लिए तैयार हैं?  
  • आपको अतिरिक्त भुगतान देकर प्रशासन अगर ऑनलाइन शिक्षण और कक्षा शिक्षण की सामग्री बनाने के लिए कहे तो क्या आप ऐसा कर सकते हो? आप ऑन लाइन शिक्षण कर सकोगे?  
  • देश की शिक्षा नीति में बदलाव कर अनिवार्य कर दिया जाए कि आप को अपने विषय के शिक्षण के लिए बच्चों को सप्ताह में दो दिन कम्प्यूटर प्रयोगशाला में ले जाना अनिवार्य है तो इस हाल में आप उन दो पीरियड का क्या उपयोग करोगे?
  • किसी दिन आप को कक्षा में अपने ब्लैकबोर्ड के स्थान पर प्रोजेक्टर बोर्ड मिले तो क्या उस दिन आप बच्चों को पढ़ा पाओगे? (आपको इसका प्रशिक्षण अभी दिया जा चुका था)
  • अगर कक्षा में कोई छात्र किसी दिन कहे कि उसने अपना होमवर्क एमपी 3 फोर्मेट में आपको ई मेल कर दिया है तो क्या आप स्टाफरूम में उसका ई मेल चैक कर होमवर्क देख सकोगे?
ये दिन अब ज्यादा दूर नही है आपको इन स्थितियों का सामना करना ही होगा। व्यवसाय जगत का लगभग कम्प्यूटराइजेशन हो चुका है। जब कि पहले शिक्षा जगत का कम्प्यूटराइजेशन होना चाहिए था। सोचिये व्यवसाय जगत को अपने काम के लिए इतना विशाल प्रशिक्षण प्राप्त जन संसाधन कहाँ से मिला होगा? क्या आप बैंक आदि में जाते हो तो अपने पुराने मित्रों को कम्प्यूटर पर धीरे धीरे अंगुली चलाते देखते हो? सोचिये कक्षा में अगर आपको ऐसे करना पड़ा तो बच्चों को कैसे सम्भाल पाओगे?
Suresh Kumar Sharma 9929515246