नफरत की बात करने वाले कथित ब्राह्मण राक्षस है, वे वर्ण व्यवस्था के अंग नही है। अन्य जातियों को इनके बहकावे में नही आना चाहिए।
जो इस विचार से सहमत न है, न ही इस दिशा में काम कर रहे वे राक्षस है। उन पर वर्ण व्यवस्था लागू ही नही होती।
ब्राह्मण एकता की बात ना करें
�ब्राह्मण, एकता का विषय नहीं हो सकता।
�यह तो सहज आकर्षण का विषय होना चाहिए।
�अगर आप देशकाल सापेक्ष मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकते हैं तो आप के प्रति सहज आकर्षण होगा।
�एकता का अर्थ है सब के गले में एक ढोल बजे।
�परंतु ब्राह्मण संगठन एक आर्केस्ट्रा के रूप में होगा।
�जातीय ब्राह्मणत्व का दायित्व लेना होगा।
�समझदार ब्राह्मण अन्य जातियों के शक्तिशाली नेतृत्व से संपर्क स्थापित करें और उनका मार्गदर्शन करें।
�अपनी चुनी हुई जाति के लोगों का जातीय गौरव कैसे बढ़ाएं उस पर उनको रणनीति दे।
�अन्य जातियों के भीतर वसुधैव कुटुंबकम की भावना का संचार करें।
�परंतु यह महज सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचे की समझ से ही संभव नहीं होगा।
�जीवन और मृत्यु जैसे चेतनागत विषयों के वैज्ञानिक प्रतिपादन से हर व्यक्ति अपना निजी विकास चाहता है।
�इस इच्छा के कारण से वसुधैव कुटुंबकम की सहज वृति हर जाति के नागरिक विकसित होगी।
�अच्छाई की प्रतिस्पर्धा के अंपायर बने।
�प्रत्येक जाति को अन्य जातियों का समर्थन लेने के लिए अपनी जाति के दायरे से बाहर निकलकर सामाजिक रचना में भाग लेना होगा।
�इस उदारता का अभाव ही उनको शुद्र बनाता है।
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सुरेश कुमार शर्मा
मनो परामर्शक
99295 15246