गायत्री उपासना और पितृ कुल

 प्रश्न: आध्यात्मिक दृष्टी से पितृलोक के गुण दोषों में दखल या समस्याओं के समाधान का दावा क्या प्रत्येक गायत्री उपासक कर सकता है? कितने जप करने पर इस तरह की क्षमता जाग जाती है? 

उत्तर: गायत्री उपासना को लोग प्राय: गायत्री जप तक सीमित रख कर देखते हैँ। पर यह पर्याप्त नही है। इसे आधुनिक तकनीक के जमाने में समझना और सरल हो गया है। एक एंड्रोयड फोन जिसमें आवश्यक तकनीकी फीचर हो उन फोन को बोल कर आदेश दिया जा सकता है। पात्र व्यक्ति के अंगुठे के स्पर्श से फोन काम करने लग जाता है। यहां तक कि पात्र व्यक्ति की आंख पहचान कर ही मोबाइल फोन आदेश की पालना करता है। क्या बेसिक फोन के सामने करोड़ बार भी किसी व्यक्ति का नाम लेकर उससे बात कर सकोगे? गायत्री मंत्र भी उपयुक्त यांत्रिक रचना के साथ काम में लिया जाने वाला ध्वनि संकेत है। ऐसा समझिए कि जैसे यह किसी राष्ट्रपति का नम्बर है जो आपको असाधारण काम कर सकने की क्षमता देता है। चेतना के जगत में यह उस देवीशक्ति का नम्बर है जो पितृलोक ही नही देवी क्षमता भी जगा देती है। परंतु, आवश्यक रचना हो तब। 
पितृलोक में दखल देने के लिए प्रकृति की द्वंद्द्वात्मक शक्तियों के परे चेतना की शुद्ध अवस्था का अनुभव चाहिए। इससे प्रकृति की स्त्रैण और पौरुष उर्जा का ज्ञान होगा। धरती के प्राणी जगत में छाया योन व्यवहार और प्रजनन पर्यावरण यहां के पितृलोक का निर्माण करता है। अनेक जन्मों की हमारी शृंखला में फैला कर्मभोग का यह लोक और पितृलोक इसी व्यवहार और पर्यावरण का विस्तृत आयाम है। इसकी सम्यक समझ और अनुभुति बिना यहाँ अपात्र व्यक्ति का रतिभर भी दखल सम्भव नही है। पितृलोक में स्त्री पुरुष सम्बंध एक आवश्यकता है, देवलोक में यह सम्बंध विलास हो जाता है। कुंडलि‍नी विज्ञान की दॄष्टि से आवश्यकता मूलाधार का विषय है और विलास सहस्रार का विषय है। नासमझी के कारण आजकल तंत्र के नाम पर धरती पर भारी उथलपुथल मची है जिससे पितृलोक भी अछूता नही है। कहने का अर्थ है कि मनुष्य जाति अपने हाथों कोढ़ पैदा कर रही है और पितृलोक से उसे खाज मिलनी शुरु हो जाती है। कोढ़ में खाज का यह दु:ख मनुष्य अपने कर्मों से भोग रहा है। ऐसे में गायत्री साधकों की इस समय भारी आवश्यकता है पर गायत्री साधना गायत्री जाप तक सीमित नही है।