योगियों के लिए भी पितृ कुल आवश्यक

 प्रश्न: भगवान की भक्ति करने वाले या ध्यानी व्यक्ति को पितृलोक से जुड़ने की क्या आवश्यकता है? 

उत्तर: इसका उत्तर पहले भारतीय शास्त्रीय संदर्भ में जान लेते हैं जिनकी इन शास्त्रों पर आस्था है उनको सरलता से समझ आएगा। फिर उनकी भाषा में भी बात कर लेंगे जिनको या तो सनातन धर्म का कोई ज्ञान नही है अथवा कुछ विज्ञान पढ लेने के कारण इन ग्रंथों को छूते हुए शर्म आती है। भक्ति और ध्यान जैसे भारी भरकम शब्दों के साथ जीने वाले अधिकांश लोग जीवन से मुँह मोड़ें हुए हैं। पितृलोक में दो भाव के लोग बोध पूर्वक जुडेंगे... मनोकामना पूर्ति के लिए जनसाधारण और कर्तव्य पूर्ति के किए भक्त अथवा ध्यानी। (एक बात ध्यान रहे कि भक्त, ध्यानी या जनसाधारण इस नेटवर्क से जुड़ा ही है, जिस प्रकार कोई मछली सागर से अछूती नही है उसी प्रकार आप इस रचना को स्वीकार करें या अस्वीकार परंतु आपके अस्तित्व से इस तंत्र का गहरा सरोकार है) सचमुच ध्यान को उपलब्ध व्यक्ति कर्तव्य भाव से पितृऋण उतारने के काम में जीवन लगा देता है, भक्ति में डूबा व्यक्ति भी सत्य का साक्षात्कार करता है तो साक्षी भाव कहिये या कर्तव्य भाव से पितृऋण चुकाता है। ऐसे लोगों को विभूति कहा जाता है अर्थात वे साधक जो पाँच भूत के प्रपंच का अतिक्रमण कर चुके। परंतु क्या वे सुबह शाम की रोटी आदि की दैहिक आवश्यकता पूरी नही करते? पाँच भूत प्रपंच से उनकी भौतिक देह तो बंधी ही है। भगवान राम ने अवतारी होते हुए भी पिता का पिंडदान किया, सीता ने अपने श्वसुर का तर्पण किया। क्या आवश्यकता थी उनको जिनके स्पर्श मात्र से पाषाण प्रतिमाएँ मुक्त होने के किस्से है। आप तलवार चलाना सीख गए इसका मतलब यह नही कि जीवन में सूई का महत्व खत्म हो गया। भगवान कॄष्ण तो पूर्ण कलावतारी कहलाते हैं पर उनके सारथी होते हुए भी युद्ध में अर्जुन के रथ की ध्वजा पर हनुमान जी क्यों? 

सोशल इंजिनियरिंग के आधार पर आप इसे इस तरह समझें कि ... मान लीजिए कि आपको लगता है कि भारत के राष्ट्रपति से आपकी मित्रता हो जाए तो मेरे जीवन के सारे संकट सरलता से ह्ल हो जाएंगे। आपके लिए वही भगवान है। यह सम्बंध आपका हो जाता है। अब आप अपने गांव में अपनी जमीन का अवैध कब्जा छुडाना चाहते हैं। आपकी इच्छा पर गृह मंत्रालय से आदेश आया और जिला प्रशासन आपके आदेश पर कब्जा छुड़वा सकता है। परंतु कर्मभोग देखिए कि कब्जेदार का रिश्ता आपके फुफा जी से है, आपकी बुआ आकर कहती है कि जमीन का सुख तो ले लोगे पर उस घर में मेरी जिंदगी नर्क हो जाएगी मैं वहाँ नही रह पाउंगी इसलिए मुझे अब यहीं शरण दे दो। सोचिए, राष्ट्रपति से सम्बंध होते हुए भी आपके भावलोक में एक दर्द बना रहेगा। कारण आपको चुनना है कि जमीन हेतु बनेगी या बुआ? पितृलोक इसी तानेबाने का नाम है। आपके आयुष्यकर्म / पितृऋण  आपको कुशलता पूर्वक निपटाने ही हैं।