प्रेत योनि के पितृ और देव योनि के पितृ

 जिनके जीवन में अपने कुल के प्रेतपितृ मंडराए रहते हैं वे दिन रात बेचैनी, बरबादी, निंदा, भय, अपराध, विरोध, घृणा के विचारों से घिरे रहते हैं। यह प्रेतयोनि का आहार है। राक्षस कुल से यह आहार इनको मिलता रहता है। दुनिया में राक्षस समाज संस्थागत तरीके से मनुष्य जीवन में यह आहार पहुंचा रहा है। 

जिनके जीवन में अपने कुल के देवपितृ मंडराए रहते हैं वे प्रेम, रचनात्मकता, मित्रता, करुणा, सद्कर्म, समाधान, सहयोग, एकता आदि विचारों से घिरे रहते हैं। यह देवयोनि का आहार है। दुनिया में इस समय संस्थागत तरीके से इस आहार की पूर्ति का तंत्र नष्ट हो चुका है। देवपितृ का जिनके जीवन में सहयोग है ऐसे लोग भयंकर रोग से भी ग्रस्त हो तो नमक की चुटकी से भी  ठीक हो जाते हैं परंतु जिन पर प्रेतपितृ हावी होते हैं तो साधारण जुकाम भी लाखों रूपये खर्च करा देता है महीनों तक पीड़ा भोगता है और उसे अंत तक सच्चाई का पता नही चलता कि आखिर हुआ क्या था। प्रेतपितृ जिन पर हावी है वे सगे भाई बंधु से भी वैर पाल कर जीवन नर्क बनाए रखते हैं देवपितृ का जिनके जीवन में सहयोग है वे शत्रु के साथ भी मैत्री व्यवहार रखते हैं क्यों कि वे जानते हैं कि मेरे ही पूर्वज आज किसी न किसी कुल में देह धारण किए हुए हैं। भारत में जाति और वर्ण व्यवस्था को ठीक से समझना है तो पितृलोक की रचना को ठीक से समझ कर हमें लोकांतर सहयोग के लिए आगे आना होगा। वरना जीवन कठिन से कठिन होता जाएगा। सामाजिक तानाबाना आपके लिए सहयोगी हो इसके लिए घर के आगे खड़े बिखारी, शत्रु, विधर्मी, विजातीय को भी इसी भाव से देखना होगा कि जैसे यह मेरे ही कुल से निकला देहधारी है जो किसी न किसी कर्ज के निपटारे के लिए आया है। आध्यात्मिक नेटवर्क की रचना इस पूरे विज्ञान के विस्तार के लिए की गई है। आपके जीवन में पितृलोक से सहयोग के हाथ बढ़े और प्रेतयोनि की शक्तियाँ आप पर कम हावी हो तो जीवन सरल हो।