वशीकरण

 (कुछ फेसबुक मित्र के फोन है कि क्या यह उपचारित यंत्र तांत्रिक पद्धति से तैयार किया गया है? शत्रुनाश कर देगा?)

आइये आज तंत्र की मारण शक्ति से कुछ पर्दा हटाते हैं।
मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, सम्मोहन, मूठ आदि शब्द इतने बाजारू ढंग से काम में लिए जाते है कि ना समझी में लोग इन चीजों पर ऐसे ही समय, पैसा खर्च कर रहे हैं जैसे काले बालों के लिए तेल पर, गोरे चेहरे के लिए क्रीम पर, ताजगी के लिए रिफाइंड तेल, लम्बाई के लिए टोनिक आदि पर, पढाई के लिए कथित अच्छी शिक्षा पर खर्च करते है पर नतीजे शून्य रहते है। व्यापक विषय है यह अत: आज केवल मारण विषय पर संक्षिप्त बात करते हैं।
आपसी शत्रुता समाज का एक मुख्य विषय है, यह व्यक्ति से व्यक्ति के साथ, व्यक्ति की संगठन के साथ, व्यक्ति की सरकार के साथ, समुह की समुह के साथ, समुह की सरकार के साथ, देश की देश के साथ होती है। इसके अलावा शत्रुता के अनेक रूप है। क्रिकेट का मैच देखते दर्शक टीवी के साथ भी शत्रुता का रिश्ता निभाते है।
तंत्र के मारण प्रयोग पर सवाल उठाते हुए सेक्युलर अपने ढंग से बात रखता है धार्मिक अपने ढंग से बात उठाता है।
कोई व्यक्ति जब मन में किसी के प्रति शत्रुता पालता है तो शत्रुता का विष शत्रु पर काम करे या न करे सबसे पहले तो उस व्यक्ति के शरीर को ही बीमार करने लगता है। फिर यह शत्रुता किसी व्यक्ति के खिलाफ हो, समुह के खिलाफ हो, सरकार के खिलाफ हो या वस्तु के खिलाफ हो परंतु शत्रुता एक विष है जो आपकी देह में है। इसे किसी कांच की बोतल में बंद कर के नही रखा जा सकता। इसकी तुलना घर में रखे तेजाब या बारूद से की जा सकती है। समझदार व्यक्ति तेजाब घर में होते हुए भी इसे टॉयलेट साफ करने के काम लेते हैं माचिस के बारूद से चूल्हा जला लेते हैं। वे न इससे अपना घर फूंकते हैं और न ही चेहरे फूंकते है।
अब प्रश्न है कि शत्रुता का तेजाब शरीर में कैसे काम करे या वास्तव में जो आपके पर्यावरण के विरुद्ध है वह आपके पर्यावरण से दूर कैसे हो जाए।
विधि: पहला चरण... आप अपनी शत्रुता को क्रोध में रुपांतरित करना सीखें। सोच समझ कर किसी एक ही बिंदु को शत्रु बनाएँ। क्रोध की तेजाब को बिखरने ना दें। कम्प्युटर की प्रोग्रामिंग की तरह एक कड़ी से दूसरी कड़ी जोड़ लें। ताकि एक आइकन पर क्लिक करते ही आपके मन के अनुकूल सब कुछ डेस्कटोप पर फैल जाए। पटाखे की लड़ी की तरह शत्रुता के हर बिंदु को इस प्रकार गूंथ लें कि एक जगह धागे को चिंगारी दिखाते ही पूरी लड़ी दहक उठे। इस बिंदु को लिखकर रख लें। अगर कोई चेहरा है तो उसका फोटो मन में बसा लें। एक बात पक्की कर लें कि अब शत्रुता का कोई दूसरा बिंदु नही है मेरे जीवन में जब तक मैं अपनी सारी उर्जा इस व्यक्ति के खिलाफ न झोंक दूँ। (मान लीजिए आपने किसी को कर्ज दिया और वसूली न कर पाए जिसके कारण घर में अनेक ऐसी परिस्थितियां खड़ी हो गई कि आप उनका कोई समाधान नही दे सकते। पत्नि बात बात पर चिडने लगी है, बच्चे गुमसुम रहने लगे है, संयुक्त परिवार है अब वहां आपके लिए कोई सम्मान नही बचा, अलग होना पड़ रहा है ऐसे में आप मारक प्रयोग करना चाहते हैं तो परिवार के सदस्यों से शत्रुता न पालें क्रोध के अपने बारुद पर नियंत्रण रखें। ऐसा न हो कि घर में दिन भर चिंगारी लगते ही आप भभक उठें)
दूसरा चरण... दिन में किसी भी समय एक घंटा के लिए एकांत में चले जाएँ। अपनी क्रोध की शक्ति को जागने दें। चेहरा याद करें, क्रोध का अपना निर्धारित बिंदु याद करें और रोद्र रूप धारण कर लें। भड़काऊ संगीत का सहारा लेना चाहें तो लें। सांस तेजी से चलने दें मुठठी तन जाने दें श्वास की गति तीव्र होने दें, हाथ पैर जैसे मचलना चाहें मचलने दें परंतु क्रोध कम न होने दें| कोशिश तो यह करें कि इस घड़ी को अपनी मरण घड़ी ही बना लें। खुद को बेहोश हो जाने दें। शरीर को कोई चोट न लगे इसलिए आसपास कोई नुकीली चीज न हो। जिसको टारगेट करते हुए मारण का यह प्रयोग आप कर रहे हैं वास्तव में आपकी उससे कोई लेन देन है तो उर्जा उसके मन पर असर डालने लगेगी और आपकी मनोकामना पूरी होगी। परंतु उससे पहले यह उर्जा आपके मन पर असर डालने लगेगी। आपका मन करेगा कि मैं अपनी मन की प्रोग्रामिंग बदल लूँ, शत्रुता की लड़ी का क्रम बदल दूँ या सब को माफ कर दूँ मुझे क्रोध नही करना चाहिए। ऐसे विचार भले ही बदलते रहे पर आप नियमित रूप से एक घंटा क्रोध करने की अपनी कसम न तोड़ें। कुछ दिन आपने जिस संकल्प से मारण प्रयोग शुरू किया उस संकल्प की पूर्ति होने लगेगी। इस प्रयोग से आप और आपका शत्रु हमेशा विन-विन सिचुएशन में होगा। आपका मारण प्रयोग एक प्रकार का क्युरेटिव कार्य है। जब आप किसी बच्चे को सर्जन को दिखाने ले जाते हैं तो सर्जन की चीरफाड़ बच्चे के लिए सजा नही है वह उपचार उसके लिए जरूरी है तो सर्जन चाकू उठाएगा ही। परंतु सर्जन अगर दवा से ही काम चला सकता है तो आपका प्रयोग अलग ढंग से पूरा हो जाएगा। प्रकृति कुछ भी ऐसा नही करती कि जिससे प्रयोग की सफलता के बाद आपको अपराध बोध हो कि मैंने क्रोध और शत्रुता के वश होकर यह क्या कर दिया।