Apparel Therapy & Soul Healing - Certificate Program

वस्त्र हमारे जीवन की मूल भूत आवश्यकताओं में से एक है । इसके सम्यक उपयोग पर हमारा स्वास्थ्य, सामूहिक समृद्धि प्रत्यक्ष रूप से निर्भर करती है । अन्य दो मूल भूत आवश्यकताओं रोटी और मकान के सम्यक उपयोग के शिक्षण प्रशिक्षण की प्रथा दुनिया भर में प्रचलित है । वस्त्र के सही उपयोग के विषय में कहीं कोई व्यापक शोध और अनुसन्धान की जानकारियां संगठित और व्यवस्थित रूप से उपलब्ध नही है । वस्त्र के व्यावसायिक पक्ष पर तो अंतर्राष्ट्रीय उद्योग पति खूब काम कर रहे हैं । फैशन के बाजार में न्यूनतम लागत पर अधिकतम लाभ और स्त्रियों, बच्चों और युवाओं के भावात्मक शोषण हेतु बोले जाने वाले शब्द फैशन शो, फैशन टेक्नोलोजी प्रतिदिन कानों में गूँजते रह्ते हैं । परंतु वस्त्र और इसके विभिन्न पहलुओं का हमारे स्वास्थ्य से क्या सम्बन्ध है इस विषय में गम्भीर चिंतन का अभाव सा है ।
राजस्थान राज्य के चूरू शहर में भास्कर पराविद्या शोध संस्थान परिधान चिकित्सा के नाम से वस्त्रों पर एक शोध परियोजना चला रहा है । चिकित्सा व स्वास्थ्य क्षेत्र में वस्त्रों के विभिन्न ढंगों से उपयोग के चमत्कारिक परिणाम सामने आये हैं । परिधान चिकित्सा में वस्त्रों को औषधि रूप में काम में लिया जा रहा है । इस प्रकार की औषधियों को वस्त्रोषधियाँ कहा जाता है । वस्त्रोषधियों के उपयोग से मनुष्य की अनेक प्रकार की मनोशारीरिक बीमारियों का उपचार सम्भव है । इस चिकित्सा पद्दति में रोगी को वनस्पति और प्राकृतिक रंग आदि सामग्रियों से उपचारित वस्त्र धारण करने के लिए दिये जाते हैं ।
अनिन्द्रा, विभिन्न प्रकार के दर्द, आलस्य, अवसाद, विभिन्न प्रकार के भय, रोग प्रतिरोधक शक्ति में कमी, आत्मविश्वास में कमी, एकाग्रता की कमी आदि समस्याओं का सफलता पूर्वक निदान किया जाता है । वस्त्रोषधियों का उपयोग रोग की आवश्यकता और रोगी की सुविधा के अनुरूप भिन्न भिन्न ढंगों से अलग अलग अवधियों के लिए किया जाता है । ओढने-बिछाने के वस्त्र, दिन में पहनने के वस्त्र, रात को सोते समय पहनने के वस्त्र , कपड़े की बनी भिन्न भिन्न प्रकार की पट्टियाँ, रूमाल, पगड़ियाँ आदि रूपों में वस्त्रोषधियाँ दी जाती है । वस्त्रोषधियाँ तैयार करते समय रोगी का परीक्षण करने के पश्चात उसके लिए प्राकृतिक कपड़ा, जड़ी-बूँटियाँ, रंग, गन्ध, सामाजिक रूप से व्यवहार्य डिजाईन आदि का चुनाव किया जाता है । यहाँ तक कि पूरी चिकित्सा प्रक्रिया में औषधि तैयार करने वाले के व्यक्तिगत आचरण की भी बारिकी से परीक्षा की जाती है । प्राकृतिक रेशे जैसे सूती, ऊनी, रेशम, पटसन आदि का उपयोग करने में प्राथमिकता बरती जाती है पर चिकित्सा की आवश्यकता के अनुसार कई बार बाजार में सही वस्त्र न मिलने के कारण कृत्रिम रेशे के बने वस्त्रों का उपचार करके भी वस्त्रोषधियाँ तैयार की जाती है ।
परिधान चिकित्सा अपनी प्रारम्भिक अवस्था में एक प्रकार की सम्मोहन चिकित्सा थी । रंगों, अंकों, ज्यामिति आकार प्रकार, वस्त्रों में लगाये जा सकने वाले अन्य अलंकरणों के सम्बन्ध में परम्परागत मान्यताओं का उपयोग कर मानसिक रोगों पर वस्त्रों का उपयोग किया गया था ।
क्या त्वचा श्वसन को औषधि ग्रहण हेतु माध्यम बनाया जा सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर जानने हेतु दादी नानी द्वारा प्रयुक्त घरों में मिल सकने वाली साधारण एवं निरापद दवाओं यथा तुलसी, हल्दी, अजवाईन, मुलहटी, चन्दन, कपूर, पुदीना, ब्राह्मी, नीम, पीपल आदि के गुण धर्मों को ध्यान में रख कर बनियान, टोपी, पट्टियाँ आदि उपचारित कर रोगी को कुछ विशेष निर्देश दे कर रोगी को पहनने के लिए दिये गये । खाँसी, त्वचारोग, बच्चों के रोगों में इसके उत्साह जनक परिणाम मिले । दमा आदि रोगों में यह पद्दति एक पूरक चिकित्सा के रूप में प्रयुक्त हो सकती है । इसके परिणामों से उत्साहित हो कर इसके लिये एक शोध योजना बनाई गई ।
प्राचीन शास्त्रों में एक व्यवस्थित चिकित्सा पद्दति के रूप में इसके सूत्र खोजने के लिए प्रयत्न किये गये । ऋषि मुनियों के युग में साधना की दृष्टि से विभिन्न तरह के आसनों व शैयाओं के प्रयोगों के वर्णन मिलते हैं । मृगचर्म, सूत, कुश, ऊन आदि के गुणों के अनुसार आवश्यकतानुसार अलग अलग निर्देश उपलब्ध हैं । लोक परम्पराओं में मान्यता के रूप में इसके सूत्र प्राप्त हुए हैं । जच्चा बच्चा को हल्दी से उपचारित वस्त्र भेंट करना, आदिवासियों द्वारा रोगी के वस्त्रों को समस्या समाधान हेतु काम में लेना, चींटियों के बिल पर रखे वस्त्र को घावों के उपचार हेतु काम में लेना, ग्रामीण क्षेत्रों में बुरी आदतों के लिए बदनाम दर्जी के हाथ से बने वस्त्र बच्चों को नही पहनने देना आदि इसके उदाहरण हैं ।
राजघरानों की कहानियों में विषाक्त वेशभूषा का उपयोग ऐसे शत्रु को मारने के लिए है लिया जाता है जो जनता में मान्यता प्राप्त हो । ऐसे मित्र रूपी शत्रु को दरबार में राजकीय सम्मान के रूप में कपड़े पहनाये जाते हैं । विषाक्त वस्त्र जब त्वचा के सम्पर्क में आते हैं शत्रु घर पहूँचने से पहले ही समाप्त हो जाता है । विषोपचारित वस्त्रों से जीवन लिया जा सकता है तो औषधियों से उपचारित वस्त्रों से जीवन दिया भी जा सकता है । इन कथाओं से प्रेरित हो कर ऐसे रोगियों पर भी काम शुरू किया गया जो स्वयं उपचार नही करवाना चाहते पर पर परिवार के लोग रोगी के ईलाज में इच्छुक हैं । नशे की आदत, संतान हीनता, योन रोग आदि इसी श्रेणी के रोग हैं ।
इस शोध परियोजना के बीज वस्तुतः प्रसिद्ध गायत्री उपासक वेद मूर्ति पंडित श्री राम शर्मा द्वारा स्थापित गायत्री परिवार के वाङ्मय में उपलब्ध है । भास्कर पराविद्या शोध संस्थान के प्रमुख कार्यकर्ता सुरेश कुमार शर्मा के अनुसार पदार्थ और चेतना के पारस्परिक सम्बन्ध के अध्ययन के बगैर समस्त पद्धतियाँ अधूरी है । पदार्थ और चेतना के पारस्परिक सम्बन्ध के अध्ययन के लिये जितनी विपुल समाज को गायत्री परिवार ने उपलब्ध करवाई है उसकी मिसाल अन्यत्र देखने को नही मिलती । पं. श्री राम शर्मा से प्राप्त प्रेरणा और चिकित्सा से प्राप्त परिणामों का ही नतीजा है कि आज एक युवा टीम भास्कर पराविद्या शोध संस्थान के रूप में धीरे धीरे आकार लेने लगी है । देश के विभिन्न भागों में इस क्षेत्र में शोध करने के इच्छुक नागरिकों के लिए अब एक त्रैमासिक पाठ्यक्रम भी विकसित किया जा रहा है । फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र में काम करने वाले युवा इस विषय में विशेष रुचि ले रहे हैं । फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र से जुड़े व्यवसायियों की राय है कि परिधान से जुड़ कर समाज में एक अलग तरह की पहचान बनाई जा सकती है । स्वास्थ्य शिक्षा समाज की एक आवश्यक और आपातकालीन सेवा है । स्वास्थ्य शिक्षक को समाज में जो सम्मान मिल जाता है एक फैशन डिजाइनर को समाज में वह स्थान बनाने के लिये बहुत संघर्ष करना पड़ता है ।
नई दिल्ली में फैशन डिजाइनर से परिधान चिकित्सक बनी श्री मति प्रतिभा विज ने इस विषय का प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अपना महत्व पूर्ण स्थान बनाया है । उसने दिल्ली में इस विषय से जुड़ने के इच्छुक युवाओं के लिये आवश्यक जानकारियाँ देने हेतु एक सूचना और परामर्श केन्द्र खोला हुआ है । कैरियर परामर्श हेतु इच्छुक व्यक्ति प्रतिभा विज से निःशुल्क सम्पर्क कर सकता है । इनका पताः
प्रतिभा क्रियेशंस,
श्री मति प्रतिभा विज,
जे 9 / 11 (आई),
राजौरी गार्डन,
नई दिल्ली
फोन 41007574

We believe...

Thought should be free from any type of sectarianism.

Authenticity of thought should be free from book, person or traditions.

Recognition of person should be free from any type of titles.

Incentive for work should be free from any type of punishment and greed. 

Don't have a preplanned picture of the society let it evolved in the context of time, place and person.

Life is An Engineering of Psychoware and Somatoware.

We are gifted bio computer.

Nature proposes and disposes us.

Untouchable part of existence is psychoware and touchable part of existence is somatoware.

Life energy, emotion, wisdom, skill, attitude are untouchable part of life, it is psychoware. Body and whole touchable existence is somatoware.

Religion, Philosophy, Tradition and Culture are operating system of life, same as windows or linex in computer.

Five sensory organs are our input and output device, same as monitor or keyboard etc in computer.

Mind works as information transformator, it convert information time and information space in real time and real space.

Orgon energy, say PRAN in Indian mysticism is power to the bio computer.

It is blend of our emotional expression and bio electrical charges on the surface of our skin at the time of emotion.

Miracles happen in our life when we are full of this energy and mind is working on something creative information to convert it in reality.

We are living in a connected human network globally, it is more powerful then www network.

We are constantly and continue changing or upgrading own bio computer through eye contacts, skin contacts, ear contacts, nose contacts, tongue contact.

Our teachers in school, parents at home, friends while we feel alone, media attack all are responsible for what we are today.

Like it?! !

Feel free to contact for total solution for all walks of life and beyond.


Why we are suffering from life style disease? A Story.



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Please translate someone for non Hindi friends. I hope it is much useful...

Teachers are now in ad agencies not in schools.

इस कहानी को जो व्यक्ति टार्गेट अचीव कर लेने वाले दस मार्केटिंग लीडरों तक पहूँचाएगा वह सामाजिक रूपांतरण के लिए अनजाने में ही भागीदार बनकर पूण्य लाभ कमायेगा ।


राजस्थान के नगरों में नेपाल से कुछ लोग मजदूरी के लिए आते हैं । स्वेच्छा से चोकीदारी करने लगते हैं ।

ईमानदारी से काम करते हैं । किसी का घर, दुकान रात को गलती से खुला रह जाता है तो जगाकर दरवाजा बन्द कर लेने या ताला लगाने के लिए बोल देता है, किसी को बाहर ट्यूर पर जाना होता है तो रात के लिए उसे बच्चों और घर का ध्यान रखने के लिए बोल दिया जाता है, किसी घर में बुढिया अकेली रहती है बच्चे बड़े शहर में कमाते हैं, कोई स्कूटर साइकिल बाहर रह जाती है तो उसे उनकी रात भर चिंता रहती है ।

लगन और ईमानदारी से काम करता है, इसके सपने भी होंगे कि नगर वासियों की तरह इसका भी कोई घर हो, पैसा हो, गाड़ी हो ।

महीने के अंत में यह चोकीदार जब गली मोहल्ले में दो-दो, पाँच-पाँच रूपये इकट्ठे करने के लिए घर दुकानों पर जाता है तो कुछ लोग पैसा दे देते हैं, कुछ बोलते हैं अगले महीने ले जाना, कोई कहता है मैं क्यों दूँ मैने क्या तुम्हे कहा है कि मेरी चोकीदारी करो ? कोई कहता है कि तुम पहरा तो देते ही नही रात को, पैसा इकट्ठा करने आ जाते हो दिन के समय, बड़ी मुश्किल से एक ईमानदार आदमी का गुजारा हो पाता है ।

करीब 400-500 घर दुकानों पर शायद एक आदमी चोकीदारी करता है ।

एक दिन एक चोर नगर में आता है और सीधे चोकीदार के घर जाकर उसे कहता है कि जो चिंताएं तुम नगर वासियों के लिए करते हो वे केवल मेरे लिए करो, लापरवाहियों, लाचारियों की जो सूचनाएं तुम्हारे पास हो वो नगर वासियों के लिए नही मेरे लिए काम में लो । नगर के 400-500 लोग मिल कर तुम्हारा पेट नही भर सकते, मेरा अकेले का साथ दो जल्दी अमीर बन जाओगे । चोकीदार सोच समझकर चोर का प्रस्ताव स्वीकार कर लेता है ।

अब चोकीदार ज्यादा मुस्तैदी से पहरा देता है, ज्यादा सतर्क निगाहों से घरों दुकानों की पड़्ताल करता है पर रात को चोरियाँ होनी शुरू हो गई है । पहरेदार की सीटियों की आवाज रातों को सुनाई देती है पर चोरियाँ है कि रुकने का नाम ही नही लेती ।

जिम्मेदार कौन ? बच्चों के जेबखर्च पर सैंकड़ों लुटा देने वाले लोग जो सब मिल कर एक मजदूर का पेट नही भर सके ? चोकीदार ? चोर ? पुलिस ? प्रशासन ?

शिक्षक रूपी चोकीदार बच्चों की अज्ञान, भय, लालच, अनुचित तर्क जैसी कमजोर खिड़कियों का रखवाला होता है पर शिक्षक का सम्मान व मजदूरी इस तरह की है कि शिक्षक होना आज जीविकोपार्जन का अंतिम व मजबूरी का जरिया है ।

प्राईवेट स्कूलों की दीवारें व भवन तो मजबूत हो रहे हैं पर शिक्षक 1000/1500 रूपये महीने में वर्ष के 8 महीने के लिए काम करने वाले थोक के भाव मिलते हैं । जीभ की मजदूरी, हाथ की मजदूरी से सस्ती हो रही है । मनोविज्ञान के जानकार सच्चे शिक्षक आज जिनको विद्यालयों में होना चाहिए विज्ञापन कम्पनियों में काम करते हैं । वे अच्छी तरह से जानते हैं कि तर्क, लालच, भय, अज्ञान को कैसे नकद किया जा सकता है ।

दुप्पट्टे और बालों की लचक 5 डिग्री कम या अधिक होते ही चॉकलेट कम्पने की चॉकलेट बिक्री में कितनी कमी या अधिकता होती है पहले से ही नापा जा सकता है, इतने कुशल मनोवैज्ञानिकों का उपयोग आज कोन कर रहा है, किसी से छुपा नही है ।

जिस शिक्षा को प्राथमिक स्कूलों का हिस्सा होनी चाहिए उसे उच्च शिक्षा के नाम पर कॉर्पोरेट वर्ल्ड के लोग केवल ऎँम बी ए जैसे पाठ्यक्रमों के लिए सुरक्षित रखे हुए है ।

उपभोक्ता शिक्षा के नाम पर स्कूलों में बाट व माप पढाये जाते हैं जब कि बाजार युद्ध के लिए तैयार किये जाने वाले योद्धाओं को बताया जाता है कि लालच को कैसे नकद करें? अज्ञानता को कैसे नकद करें ? व्यक्तित्व के भय को कैसे नकद करें ? तर्क शीलों का शील कैसे हरण करें ?

( क्या इनको चोरों की जमात कहना ठीक रहेगा ? या ब्राण्ड का बैल्ट बान्धे हुए शिकारी कुत्ते जो ऐसे घरों में मोबाइल बेच जाते हैं जिनके घर में खाने को रोटी नही, जिनकी बहनें धन के अभाव में अनब्याही बैठी है उन भाईयों को किश्तों पर गाड़ी दे आना इनके बांये हाथ का खेल है । अपने ही भाईयों को नोच कर खा जाने के लिए प्रशिक्षित किये ये लोग जानते तक नही कि जिनके लिए ये काम करते हैं वो आखिर छुप कर बैठा कहाँ है ? नगर, शहर में उन अनजान लोगों की ब्रांड पोजिशनिंग के लिए ये छोटे छोटे लाचार किये गये चोकीदार अपने ही बजूद की आहूति दे देते हैं । जीवन के अंत में इनको इनके नाम से पड़ोसी भी नही पहचानते । क्यों कि ग्राहकों का तो पीते ही हैं, इनका भी खून पी पीकर कॉर्पोरेट मोटे होते जाते हैं, ब्राण्ड पॉपुलरिटी तो कॉर्पोरेट की बढ़्ती है। )

मार्केटिंग गुरू फिलिप कोटलर का कहना है कि भविष्य का सच्चा शिक्षक व आध्यात्मिक व्यक्ति मार्केटिंग परसन होगा । पर उसके आध्यात्मिक होने तक तो वह अपने ही पता नही कितने मित्रों, रिश्तेदारों, समाजों को लील चुका होगा ।
पर गलती भी तो आखिर उसी आम नागरिक की है जिसने चोकीदार के काम की इज्जत नही की । अब वही सजा भी पा रहा है । भुगतो !!

Volunteer's Application Form

निर्देश: 
आवेदन के साथ अपना पासपोर्ट साइज का फ़ोटो लगाएं । 
डाक अथवा कॉरियर से भेजे आवेदन ही स्वीकार किये जाते हैं । 
ऐसे मित्र आवेदन नही करें जिनको पहले कभी किसी भी कारण से अस्वीकार किया जा चुका हो, परंतु उसके परिवार के अन्य सदस्य आवेदन के लिए स्वतंत्र हैं । 
अगर आप किसी प्रस्तावित शोध में सहयोग हेतु आवेदन नही कर रहे बल्कि व्यक्तिगत समस्या समाधान हेतु आवेदन कर रहे हैं तो इस आवेदन में क्रमाँक 9. के स्थान पर आप अपने विस्तृत विवरण का पत्र साथ में संलग्न कर दें । (समस्याग्रस्त व्यक्ति अपने हाथ से विस्तृत विवरण लिखें, टाइप किये हुए पत्र व्यर्थ हैं)
चिकित्सा योग्य समस्या पर आप अगर हमसे सहयोग चाहते हैं तो आप से निवेदन है कि परम्परागत चिकित्सा प्रणालियाँ जिनका आप उपयोग करते आये हैं उसे जारी रखें । हमारा सहयोग अभी तक आस्था व मान्यता का विषय है जिसकी अपनी अलग सम्भावना व सीमाएँ हैं । किसी भी प्रकार के विधिक मानदण्ड के अभाव में हमारा यह सम्बन्ध परस्पर सदविश्वास पर आधारित है।
 
1. नाम ................................................................................
2. पिता/पति ............................................................................... 
3.जन्म स्थान एवं जन्म तिथि और समय 
................................................................................
4. आप अपने को क्या कहलाना पसन्द करते हैं? ( दोनों ही स्थिति में आपका स्वयंसेवक के रूप में सहयोग स्वीकार है)
           आस्तिक           /                नास्तिक  
5. पत्र व्यवहार का पता
 ............................................................................................................................................................
...............................................................................
...............................................................................
6. फ़ोन नं.
 ..............................................................................
7. मोबाईल
............................................................................... 
8. ईमेल
 ..........................................................................
9. प्रस्तावित शोध एवं अनुसन्धान विषय जिसके लिए आप स्वयं सेवक के रूप में पंजीयन कराना चाहते हैं 
.............................................................................
10. क्या आप अनुमानित 45 दिन के लिए नियमित रूप से प्रतिदिन 10 मिनट अपने घर पर रहकर हमारे निर्देशानुसार प्रयोग करना चाहेंगे ? 
हाँ / नही, मैं किसी अन्य रूप में अपनी सेवाएं देना चाहुँगा जो इस प्रकार की हो सकती है 
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Working Area for A Health Educator...

Health & Value Education are the most required services worldwide. 

For a common man there is no motivation for good heath and value added education. 

Would you like to play the role of a motivator in the success-oriented society? 

Are you interested in being a role model for coming generation? 

This is the most respectable role in the world. 

You can work for :

 

  • Insomnia 
  • Relaxation & Tension
  • Concentration
  • Memory
  • Improved Reflexes
  • Self - confidence
  • Pain Control
  • Sex Life
  • Efficiency
  • Motivation
  • Interpersonal Relationships
  • Aging Process
  • Career Life
  • Anxiety & Depression
  • Bereavement
  • Headaches
  • Migraine
  • Allergies & Skin Disorder
  • Immune System to Resist any Disease
  • Elimination of Habits
  • Phobias and Other Negative Tendencies (Self - defeating Sequences)
  • Decisiveness
  • Quality of People & Circumstances in General that you attract into your life
  • Ability to Earn and Hold onto Money
  • Overall Quality of your life
  • Obsessive - compulsive behavior
  • Psychic Awareness
  • ESP
  • Meditation
  • Astral Projection (Out of Body Experiment)
  • Telepathy
  • Super Conscious Mind Taps
  • Fear of Death
  • Attracting a Soul mate into your life
  • Harmony of Body, Mind & Soul   

What actually we do...?





 वैकल्पिक  एवं पूरक  चिकित्सा  पद्धतियों का दैनिक जीवन में प्रचलन  बढता जा रहा है । इन पद्धतियों से प्राप्त परिणाम और इनके निरंतर विस्तार से इनकी  आवश्यकता को समझा जा सकता हैं। स्वयं के स्वास्थ्य  लाभ और  स्वास्थ्य के  क्षेत्र में सेवाएं देने  के इच्छुकों  को पदार्थ और  चेतना के पारस्परिक सम्बन्ध के विषय में आधूनिक जानकारियों  एवं अध्यात्म  पर आधारित  मान्याताओं  का  प्रारम्भिक  ज्ञान हो तो व्यक्ति  और समाज को असीम लाभ मिल सकता है। जीवन के सम्बन्ध  में  पदार्थवादी  मान्यता और आत्मवादी मान्यता से  हमारे  स्वास्थ्य का  गहरा सम्बन्ध  है। प्राण  चिकित्सा और  आस्था चिकित्सा, वैकल्पिक और पूरक चिकित्सा पद्धतियों का आधार है। प्राण  चिकित्सा और आस्था  चिकित्सा के  पक्ष विपक्ष में सही  जानकारी  जुटाकर ही  अपनी राय कायम  करना बुद्धिमानी  होगी। यह  संस्थान  वर्षों से इन विषयों में  अनुसन्धान कर  रहा है । जनसधारण को इस  विषय में अपनी  जिज्ञासा का पत्राचार और व्यक्तिगत  सम्पर्क से  अनेक प्रकार का समाधान  मिलता रहता है। 
 यह  संस्थान विभिन्न मनोशारीरिक रोगों के उपचार हेतु सामूहिक  आध्यात्मिक  चिकित्सा प्रयोग नियमित रूप से संचालित करता  है और वैज्ञानिक विधियों से परिणामों का परीक्षण करता है। अनेक  अवस्थाओं में  रोगी को  स्वास्थ्य लाभ के लिए  स्वय़ं उपस्थित होना आवश्यक नही है। संस्थान  प्राण चिकित्सा और आस्था चिकित्सा की  अपनी सेवाएं  समाज के हर वर्ग को बिना किसी भेद भाव  के उपलब्ध  कराता है । रोगी की  आवश्यकता के अनुसार आवश्यक उपचार  कराते रहते  समय भी इस  सेवा का लाभ  लिया जा सकता है। पूरक चिकित्सा के लिए रोगी का नाम, पता, रोग का विवरण, आयु  और सम्भव हो  तो चित्र  प्रेषित कर दें। शारीरिक स्वास्थ्य का  हमारे सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक और वैवाहिक जीवन की विभिन्न  समस्याओं से प्रत्यक्ष  सम्बन्ध है ।  इस तरह की समस्याओं के  समाधान के लिए भी उपरोक्त  रीति ही  अपनायी जाती है । मात्र रोग के विवरण के  स्थान पर  समस्या का  विवरण लिख दिया जाता है।
    तनाव, एकाग्रता में कमी, आत्मविश्वास में कमी, उत्साह की कमी, पारस्परिक  सम्बन्धों  में कटुता, असमय बुढापा, चिंता, रोग प्रतिरोधक शक्ति में  कमी, नकारत्मक  दृष्टिकोण, धन  की तंगी, कर्जा, डूबत ऋण आदि  समस्याओं से  आस्था चिकित्सा से  छुटकारा पाया  जा सकता है। जीवन में अनिंद्रा, अवसाद, दर्द, सरदर्द, कमरदर्द, नजरदोष, वैवाहिक समस्याएं, डर, भूलने की आदत, चर्मरोग, जैसी  समस्याएं  प्राणसाधनाओं  की कमी के कारण  उत्पन्न होती है। निर्बल प्राण के व्यक्ति इन  समस्याओं के  जल्दी शिकार  हो जाते हैं।  
    जीवन  प्रशिक्षण  एवं स्वास्थय  परामर्श के क्षेत्र  में युवा वर्ग  की रूचि जाग्रत हो  इसलिए जीविका  उपार्जन हेतु  आवश्यक मार्गदर्शन  भी दिया जाता है । वैकल्पिक  एवं पूरक  चिकित्सा के  क्षेत्र में  स्वयं सेवक के  रूप में कार्य  करने के इच्छुक  व्यक्ति प्रशिक्षण  प्राप्त करने  हेतु आवेदन  मंगा सकते हैं । प्रायः  यह प्रशिक्षण  ऐसे मित्र लेते  हैं जो स्वयं  इस विधा से  किसी न किसी रोग अथवा  समस्या से  छुटकारा पाते हैं । ऐच्छिक  सहयोग की बात अलग है, वैसे  रोगोपचार, समस्या  निवारण और  प्रशिक्षण  हेतु किसी भी प्रकार का शुल्क नही  लिया जाता है।
      पत्राचार  के लिए स्वयं  का पता लिखा  हुआ लिफाफा  साथ भेजें । व्यक्तिगत  परामर्श के  लिये पूर्व  सूचना देकर  समय  निर्धारित कर  लेना उपयुक्त  रहता है।
वीणा शर्मा
सचिव