Becoming A Reader... 1
आप यकीन करें या ना करें जन्म लेते ही आपका बच्चा एक अच्छा पाठक बन जाता है। जब वह पहली ध्वनि सुन रहा है तो ये उसके लिए एक पाठन है, जब भी आप बोलते हो, गाते हो या उसकी किसी हरकत पर आप प्रतिक्रिया करते हो वह उसको पढ़ना चाहता है और पढ़ता है। मतलब ये है कि जन्म लेते ही बच्चा अपनी पठन क्षमता को और मजबूत करने के लिए प्रयत्नशील हो जाता है। और आपके मार्गदर्शन में वह अपनी इस क्षमता को निरंतर बढ़ाता रहता है। बच्चे का भाषा के साथ यह सम्बन्ध बनाने का आपका प्रयास जितना अधिक प्रभावी होता है बच्चा उतना ही अधिक वातावरण के प्रति अनुकूलन बना लेता है। उसका पिछड़ जाना उसकी कमी नही हमारी लापरवाही है। एक सीमा के बाद हम उसके साथ सम्वाद करना बन्द कर देते हैं या उतने प्यास से प्रतिक्रिया नही करते जितना उसके साथ उसके शिशुकाल में करते हैं। भाषा के सीखने के उसके प्रयास को समझने के लिए हमें यह जान लेना चाहिए कि भाषा के चार स्तम्भ है... सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना। चारों स्तम्भ एक दूसरे के सहारे खड़े हैं। सुनने के बिना बोलना नही हो सकता। यही कारण है कि बहरा व्यक्ति गूंगा भी होता है। सुनने के बिना लिखना भी नही हुआ था और लिखने के बिना पढ़ना सम्भव नही है। अब समझने की बात यह है कि माता पिता भाषा के यह चारों माध्यम अपने बच्चे को कुशलता से कैसे हस्तांतरित करे। बच्चे की इन चारों कुशलता के विकास के लिए विद्यालय से ज्यादा माता पिता की जिम्मेदारी है। उसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारियाँ वह स्वयं सम्भाल सके उसके लिए निरंतर प्रयत्न करते रहना परिवार के लिए आवश्यक है। आपके बच्चे की सामाजिक में भी भूमिका बढ़े उसके लिए विद्यालय उपयोगिता है। अत: परिवार का एक निरंतर दायित्व है कि व्ह बच्चे को सुने और उसे बात करना सिखाए, उसके साथ पाठन से जुड़े, उसे पुस्तक से परिचय कराए, जल्दी से जल्दी उसे लिखना सिखाए, स्पष्ट पाठन उसकी कुशलता हो सके इस प्रयास में कोई कसर नही छोड़नी चाहिए। आपकी रुचि के कारण ही वह पुस्तक से प्रेम करना सीख सकता है। आप स्वयं विचार करें कि आपकी आय का कितना प्रतिशत हिस्सा अच्छी पुस्तकों पर खर्च होता है? आपके लिए यह आवश्यक नही है कि आप उसके साथ निरंतर पढ़े। पर जब उसने पढ़ना सीख लिया है तो उसके नये पढ़े गये पर आप उससे निरंतर चर्चा अवश्य करें जिससे आपको भी कुछ नया सीखने को मिलेगा और बच्चे को में भी पढ़ने के प्रति सम्मान जागेगा। क्यों कि आप उसकी नई जानकारियों के प्रति प्रेम करते हैं। वह आपका प्रेम पाने के लिए नया सीखेगा। प्राय: सात वर्ष की आयु तक बच्चे पढ़ना सीख लेते हैं। माता पिता की सक्रीयता और बच्चे की निजी क्षमता की सम्भावना के कारण यह समय कभी कभी असाधारण रूप से कम या अधिक हो सकता है। पढ़ने की क्षमता आने के बाद कुछ बच्चे तो निरंतर नया पढ़ने की तलाश करते हैं और कुछ अपनी पुरानी पुस्तकों को बार बार दोहरान पसन्द करते हैं। जो बच्चे पुरानी पुस्तकों का दोहरान पसन्द करते हैं उनकी स्मरण शक्ति का विकास करने में परिवार मदद कर सकत है और जो नया पढ़ना चाहते हैं उनकी विचार शक्ति और तार्किक शक्ति का विकास होने लगेगा। दोनों ही स्थितियाँ आरम्भिक अवस्था में बच्चे के लिए उपयोगी है। बच्चे को छोटी आयु में ही अगर सही मददगार मिल जाए तो बाद में आने वाली पढ़ने और समझने की कठिनाई दूर हो जाती है। बच्चे को एक सफल पाठक पाठक बनाने का सफर बहुत ही रोचक होता है माता पिता के लिए भी और स्वयं बच्चे के लिए भी इस रोमांच से किसी को भी चूकना नही चाहिए। आपके बच्चे के भविष्य के लिए यह एक शानदार तोहफा भी है।
सुरेश कुमार शर्मा 9929515246
आप यकीन करें या ना करें जन्म लेते ही आपका बच्चा एक अच्छा पाठक बन जाता है। जब वह पहली ध्वनि सुन रहा है तो ये उसके लिए एक पाठन है, जब भी आप बोलते हो, गाते हो या उसकी किसी हरकत पर आप प्रतिक्रिया करते हो वह उसको पढ़ना चाहता है और पढ़ता है। मतलब ये है कि जन्म लेते ही बच्चा अपनी पठन क्षमता को और मजबूत करने के लिए प्रयत्नशील हो जाता है। और आपके मार्गदर्शन में वह अपनी इस क्षमता को निरंतर बढ़ाता रहता है। बच्चे का भाषा के साथ यह सम्बन्ध बनाने का आपका प्रयास जितना अधिक प्रभावी होता है बच्चा उतना ही अधिक वातावरण के प्रति अनुकूलन बना लेता है। उसका पिछड़ जाना उसकी कमी नही हमारी लापरवाही है। एक सीमा के बाद हम उसके साथ सम्वाद करना बन्द कर देते हैं या उतने प्यास से प्रतिक्रिया नही करते जितना उसके साथ उसके शिशुकाल में करते हैं। भाषा के सीखने के उसके प्रयास को समझने के लिए हमें यह जान लेना चाहिए कि भाषा के चार स्तम्भ है... सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना। चारों स्तम्भ एक दूसरे के सहारे खड़े हैं। सुनने के बिना बोलना नही हो सकता। यही कारण है कि बहरा व्यक्ति गूंगा भी होता है। सुनने के बिना लिखना भी नही हुआ था और लिखने के बिना पढ़ना सम्भव नही है। अब समझने की बात यह है कि माता पिता भाषा के यह चारों माध्यम अपने बच्चे को कुशलता से कैसे हस्तांतरित करे। बच्चे की इन चारों कुशलता के विकास के लिए विद्यालय से ज्यादा माता पिता की जिम्मेदारी है। उसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारियाँ वह स्वयं सम्भाल सके उसके लिए निरंतर प्रयत्न करते रहना परिवार के लिए आवश्यक है। आपके बच्चे की सामाजिक में भी भूमिका बढ़े उसके लिए विद्यालय उपयोगिता है। अत: परिवार का एक निरंतर दायित्व है कि व्ह बच्चे को सुने और उसे बात करना सिखाए, उसके साथ पाठन से जुड़े, उसे पुस्तक से परिचय कराए, जल्दी से जल्दी उसे लिखना सिखाए, स्पष्ट पाठन उसकी कुशलता हो सके इस प्रयास में कोई कसर नही छोड़नी चाहिए। आपकी रुचि के कारण ही वह पुस्तक से प्रेम करना सीख सकता है। आप स्वयं विचार करें कि आपकी आय का कितना प्रतिशत हिस्सा अच्छी पुस्तकों पर खर्च होता है? आपके लिए यह आवश्यक नही है कि आप उसके साथ निरंतर पढ़े। पर जब उसने पढ़ना सीख लिया है तो उसके नये पढ़े गये पर आप उससे निरंतर चर्चा अवश्य करें जिससे आपको भी कुछ नया सीखने को मिलेगा और बच्चे को में भी पढ़ने के प्रति सम्मान जागेगा। क्यों कि आप उसकी नई जानकारियों के प्रति प्रेम करते हैं। वह आपका प्रेम पाने के लिए नया सीखेगा। प्राय: सात वर्ष की आयु तक बच्चे पढ़ना सीख लेते हैं। माता पिता की सक्रीयता और बच्चे की निजी क्षमता की सम्भावना के कारण यह समय कभी कभी असाधारण रूप से कम या अधिक हो सकता है। पढ़ने की क्षमता आने के बाद कुछ बच्चे तो निरंतर नया पढ़ने की तलाश करते हैं और कुछ अपनी पुरानी पुस्तकों को बार बार दोहरान पसन्द करते हैं। जो बच्चे पुरानी पुस्तकों का दोहरान पसन्द करते हैं उनकी स्मरण शक्ति का विकास करने में परिवार मदद कर सकत है और जो नया पढ़ना चाहते हैं उनकी विचार शक्ति और तार्किक शक्ति का विकास होने लगेगा। दोनों ही स्थितियाँ आरम्भिक अवस्था में बच्चे के लिए उपयोगी है। बच्चे को छोटी आयु में ही अगर सही मददगार मिल जाए तो बाद में आने वाली पढ़ने और समझने की कठिनाई दूर हो जाती है। बच्चे को एक सफल पाठक पाठक बनाने का सफर बहुत ही रोचक होता है माता पिता के लिए भी और स्वयं बच्चे के लिए भी इस रोमांच से किसी को भी चूकना नही चाहिए। आपके बच्चे के भविष्य के लिए यह एक शानदार तोहफा भी है।
सुरेश कुमार शर्मा 9929515246