शिक्षक?जी नही, आपने गलत पहचाना। और कुछ करने को था नही इसलिए जीभ का मजदूर बन गया हूँ। सरकारी स्कूल में नोकरशाह के तलवे चाटता हूँ। प्राइवेट स्कूल में मालिक की ठोकरों में पलता हूँ। नई नस्ल की सोच को मारने का हूनर सीख गया हूँ। हमारे गिरोह से कुछ बच जाते है तो बड़ी कम्पनी में नोकर हो जाते हैं। अधमरे सरकारी नोकर हो जाते हैं। हैरान हूँ ये सोच कर कि इन मुर्खों की बस्ती में लोग मुझे कभी कभी सम्मानित भी करते हैं। क्या इसलिए कि कुछ लोग अपनी सोच बचा कर ले जाते हैं मेरी लाख कोशिश के बावजूद कुछ लोगों की सोच जिन्दा रह जाती है। मुझे आज भी अपने बच्चों के लिए एक शिक्षक की तलाश है।