कौन कहता है कि श्रवण कुमार के माता पिता अन्धे थे?
पौरोणिक कहानियाँ प्रतीकों में लिखे गये सन्देश है। श्रवण कुमार की कहानी अक्सर स्कूलों में छोटे बच्चों को सुनाई जाती है और अपेक्षा की जाती है कि वे अपने माता पिता की वैसी ही सेवा करें जैसे श्रवण कुमार करता था। घरों में बूढ़े मा बाप अक्सर इस कहानी को सुन कर अपने बच्चों पर अंगुली उठाते हैं। जब कहानियों के प्रतीक खो जाते हैं और अपात्र व्यक्ति कहता सुनता है तो वे कहानियाँ असर करना बन्द कर देती है। इस कहानी में जिन माता पिता का उल्लेख किया गया है वह इस जगत के हर माता पिता की कहानी है। माता पिता जब अपना जीवन जी लेते हैं, बच्चों पर जब परिवार का बोझ आ पड़ता है तो इस बीच जमाना इतना तेजी से बदल जाता है कि माता पिता का नजरिया नई पीढ़ी के काम का नही रह जाता है। बच्चों को जो दिखाई देता है वह माता पिता को दिखाई देना बन्द हो जाता है। इसका अर्थ ये नही है कि अब माता पिता व्यर्थ हो गये हैं। उनकी शारीरिक आयु क्षीण होती जा रही होगी पर पुनर्जन्म की धारणा के अनुसार जीवन की सततता के कारण हर क्षण मनुष्य को स्वयं को अनावृत करना है। अब पुत्र माता पिता को ठीक उसी तरह से अपनी दुनिया दिखाए जैसे बचपन में उसके माता पिता ने अपनी दुनिया से परिचय कराया था। जरूरी नही है कि आप तत्काल कहते ही वे बातें समझ जाते थे जो आपके माता पिता आपको कहना चाहते थे। धैर्य पूर्वक उन्होंने आपको उस जगत का परिचय कराया। अब आगे का सफर आप अपने ढ़ंग से कर सकते हैं पर उनको साथ तो रखना चाहिए।
ये तो है कहानी के प्रतीक की व्याख्या। अब प्रश्न ये है कि कौन इस कहानी को कहे सुने कि जिससे इस कहानी का अर्थ तत्काल असर करे? इस कहानी को कोई पुत्र अपने माता पिता के मुख से सुनता है तो इसका कोई असर नही होता। स्कूल में शिक्षक भी ये कहानी बच्चों को सुनाए तो असरकारी नही है। इस कहानी को पत्नि अपने मुख से पति को सुनाए तो ये कहानी सबसे अधिक असरकारी हो सकती है। पत्नि अगर पति का सहयोग करे तो यह कहानी समाज पर अपनी छाप छोड़ सकती है। अन्यथा इस कहानी का होना ही व्यर्थ है।
सुरेश कुमार शर्मा 9929515246
पौरोणिक कहानियाँ प्रतीकों में लिखे गये सन्देश है। श्रवण कुमार की कहानी अक्सर स्कूलों में छोटे बच्चों को सुनाई जाती है और अपेक्षा की जाती है कि वे अपने माता पिता की वैसी ही सेवा करें जैसे श्रवण कुमार करता था। घरों में बूढ़े मा बाप अक्सर इस कहानी को सुन कर अपने बच्चों पर अंगुली उठाते हैं। जब कहानियों के प्रतीक खो जाते हैं और अपात्र व्यक्ति कहता सुनता है तो वे कहानियाँ असर करना बन्द कर देती है। इस कहानी में जिन माता पिता का उल्लेख किया गया है वह इस जगत के हर माता पिता की कहानी है। माता पिता जब अपना जीवन जी लेते हैं, बच्चों पर जब परिवार का बोझ आ पड़ता है तो इस बीच जमाना इतना तेजी से बदल जाता है कि माता पिता का नजरिया नई पीढ़ी के काम का नही रह जाता है। बच्चों को जो दिखाई देता है वह माता पिता को दिखाई देना बन्द हो जाता है। इसका अर्थ ये नही है कि अब माता पिता व्यर्थ हो गये हैं। उनकी शारीरिक आयु क्षीण होती जा रही होगी पर पुनर्जन्म की धारणा के अनुसार जीवन की सततता के कारण हर क्षण मनुष्य को स्वयं को अनावृत करना है। अब पुत्र माता पिता को ठीक उसी तरह से अपनी दुनिया दिखाए जैसे बचपन में उसके माता पिता ने अपनी दुनिया से परिचय कराया था। जरूरी नही है कि आप तत्काल कहते ही वे बातें समझ जाते थे जो आपके माता पिता आपको कहना चाहते थे। धैर्य पूर्वक उन्होंने आपको उस जगत का परिचय कराया। अब आगे का सफर आप अपने ढ़ंग से कर सकते हैं पर उनको साथ तो रखना चाहिए।
ये तो है कहानी के प्रतीक की व्याख्या। अब प्रश्न ये है कि कौन इस कहानी को कहे सुने कि जिससे इस कहानी का अर्थ तत्काल असर करे? इस कहानी को कोई पुत्र अपने माता पिता के मुख से सुनता है तो इसका कोई असर नही होता। स्कूल में शिक्षक भी ये कहानी बच्चों को सुनाए तो असरकारी नही है। इस कहानी को पत्नि अपने मुख से पति को सुनाए तो ये कहानी सबसे अधिक असरकारी हो सकती है। पत्नि अगर पति का सहयोग करे तो यह कहानी समाज पर अपनी छाप छोड़ सकती है। अन्यथा इस कहानी का होना ही व्यर्थ है।
सुरेश कुमार शर्मा 9929515246