How our education system work!
कल्पना करिये, माता पिता के लिए अनिवार्य कर दिया जाए कि अपने नवजात बच्चे को चलना सिखाने के लिए उनको किसी विश्वविद्यालय से एक सर्टिफिकेट कोर्स करना अनिवार्य होगा... कारण... बिना सर्टिफिकेट के बच्चे को चलाने, बैठाने की कौशिश की और इस प्रयास में बच्चे का संतुलन बिगड़ने के कारण वह गिर जाता है तो वह बच्चे के प्रति क्रूरता मानी जाएगी, ये एक आपराधिक कृत्य है उन पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। ( डरता हूँ कि कोई सिरफिरा सत्ताधारी इसे पढ़कर सचमुच कानून ना बना दे)
... अब सोचिये सिलेबस क्या होगा? बच्चे के शरीर की भौतिक और रासायनिक बनावट, गति और स्थिति सम्बन्धी जटिल गणितीय सिद्धांत, कोणीय वेग, धरातल और सीढ़ियों की बनावट, गुरुत्वाकर्षण बल, अभिकेन्द्रीय और अपकेन्द्रीय बल की गणना...
.... क्या इरादा है बच्चे की सुरक्षा के लिए इतना सिलेबस पर्याप्त है? ना... वामपंथी और दक्षिण पंथी सब सड़क पर आ जाईए, आन्दोलन करिये, ABVP, NAUI, SFI चुप क्यों है? बिना सर्टिफिकेट के बच्चों को चलना सिखाना तो मानवाधिकार का ईश्यु बनता है। अन्तर्राष्ट्रीय सन्धी पत्रों पर हस्ताक्षर करिये, राष्ट्रों को बिल पास करने के लिए बाध्य करिये। मंत्रालय, परिषद और एसोसियेशन बनाओ।
कमोबेश यही हाल हमारे विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास व अन्य मानविकी विज्ञान का कर दिया गया है।
एक अनपढ़ मा जैसे अपने बच्चे को चलना सिखा लेती है वैसे ही एक व्यापारी का बेटा रातोंरात करोड़पति बन जाता है और अपने कारोबार सम्भालने के लिए सर्टीफाइड लोग कैम्पस में ढूँढता फिरता है।
फास्ट रीडिंग के जरिये जो कॉमन सेंस बच्चों को शिक्षा काल में मिलना चाहिए उसे स्पेशियेलाइजेशन के नाम पर ... अब क्या कहा जाए इसे मुर्खता कहा जाए या षड्यंत्र भगवान ही मालिक है इस देश की शिक्षा व्यवस्था का...
सुरेश कुमार शर्मा 9929515246
कल्पना करिये, माता पिता के लिए अनिवार्य कर दिया जाए कि अपने नवजात बच्चे को चलना सिखाने के लिए उनको किसी विश्वविद्यालय से एक सर्टिफिकेट कोर्स करना अनिवार्य होगा... कारण... बिना सर्टिफिकेट के बच्चे को चलाने, बैठाने की कौशिश की और इस प्रयास में बच्चे का संतुलन बिगड़ने के कारण वह गिर जाता है तो वह बच्चे के प्रति क्रूरता मानी जाएगी, ये एक आपराधिक कृत्य है उन पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। ( डरता हूँ कि कोई सिरफिरा सत्ताधारी इसे पढ़कर सचमुच कानून ना बना दे)
... अब सोचिये सिलेबस क्या होगा? बच्चे के शरीर की भौतिक और रासायनिक बनावट, गति और स्थिति सम्बन्धी जटिल गणितीय सिद्धांत, कोणीय वेग, धरातल और सीढ़ियों की बनावट, गुरुत्वाकर्षण बल, अभिकेन्द्रीय और अपकेन्द्रीय बल की गणना...
.... क्या इरादा है बच्चे की सुरक्षा के लिए इतना सिलेबस पर्याप्त है? ना... वामपंथी और दक्षिण पंथी सब सड़क पर आ जाईए, आन्दोलन करिये, ABVP, NAUI, SFI चुप क्यों है? बिना सर्टिफिकेट के बच्चों को चलना सिखाना तो मानवाधिकार का ईश्यु बनता है। अन्तर्राष्ट्रीय सन्धी पत्रों पर हस्ताक्षर करिये, राष्ट्रों को बिल पास करने के लिए बाध्य करिये। मंत्रालय, परिषद और एसोसियेशन बनाओ।
कमोबेश यही हाल हमारे विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास व अन्य मानविकी विज्ञान का कर दिया गया है।
एक अनपढ़ मा जैसे अपने बच्चे को चलना सिखा लेती है वैसे ही एक व्यापारी का बेटा रातोंरात करोड़पति बन जाता है और अपने कारोबार सम्भालने के लिए सर्टीफाइड लोग कैम्पस में ढूँढता फिरता है।
फास्ट रीडिंग के जरिये जो कॉमन सेंस बच्चों को शिक्षा काल में मिलना चाहिए उसे स्पेशियेलाइजेशन के नाम पर ... अब क्या कहा जाए इसे मुर्खता कहा जाए या षड्यंत्र भगवान ही मालिक है इस देश की शिक्षा व्यवस्था का...
सुरेश कुमार शर्मा 9929515246