No Vocational Education, We want Professionalization of Education.

व्यावसायिक शिक्षा से पहले हमें शिक्षा का व्यावसायीकरण चाहिए... एक न्यूज पेपर और टीवी चैनल के लिए जैसे उसका पाठक या श्रोता उत्पाद होता है, जिसे वह विज्ञापनदाताओं को ले जाकर बेचता है। कोई निर्माता मानो अपनी वस्तु बना कर बेचता है। उसी प्रकार किसी भी शिक्षण संस्था के लिए उसके विद्यार्थी उसके उत्पाद है। कोई समय रहा होगा जब इन शिक्षण संस्थानों से निकले उत्पाद की भारी माँग रही होगी पर आज हालात खराब है। जिन शिक्षण संस्थानों को अपने भविष्य की चिंता थी उन्होंने प्लेसमेण्ट सेण्टर खोल लिए क्यों कि अब इस मार्केटिंग फ्रण्ट के बिना माल बिकना मुश्किल हो रहा था। किसी भी कॉलेज के पाठ्यक्रम की 
गुणवत्ता की प्रथम श्रेणी तो ये है कि बिना प्लेसमेण्ट सेल के (विद्यार्थी रूपी उत्पाद का सेल काउण्टर) ही उत्पाद समाज हाथों हाथ स्वीकार कर ले। दूसरे स्तर के कॉलेज, विश्वविद्यालय वे हैं जो प्लेसमेण्ट सेल के जरिये माल बेचें और 100 प्रतिशत बिक जाएं। तीसरे दर्जे के कॉलेज, विश्वविद्यालय वे हैं जो प्लेसमेण्ट सेल खोले और माल बेचने का कोई प्रयास करें और आंशिक सफलता मिल जाए। अब सवाल ये है कि सरकार स्किल डवलपमेण्ट की बात कर रही है तो उसको किसी भी नये उत्पाद सेंटर के खोले जाने से पहले मौजूदा उत्पाद सेंटरों में प्लेसमेण्ट सेंटर खोलकर उनकी बिक्री में सहयोग करना चाहिए। देश इस समय या तो ओवर प्रोडक्शन के संकट से गुजर रहा है क्यों नये उत्पाद सेण्टर खोले जा रहे हैं? या प्रोडक्शन सेण्टर पर गुणवत्ता मानकों की पालना नही की जाती, कचरा उत्पादन किया जा रहा है जिसकी समाज को आवश्यकता ही नही है। कोई समझदारी बरतेगा शिक्षा उद्योग को ठीक से चलाने में?
अरे किसी फैक्टरी में असेम्बली लाइन पर चैन सप्लाई मैनेजमेण्ट से ही कुछ सीख लो। जब तक कोई निश्चित प्लेटफार्म पर निर्धारित टास्क पूरा नही किया जाता अगले प्लेटफार्म पर अगला टास्क पूरा होना मुश्किल हो जाएगा
। अंतिम उत्पाद बिकने योग्य नही रहेगा। सोचो कोई कार इसी तरह की असेम्बली लाइन पर तैयार हो कर आए जिसमें कल पुर्जे आधे अधूरे लगे हों, क्वालीटी वाले ना हो तो रोड पर गाड़ी ले आओगे?
ग्रेडिंग करने का अधिकार किसे होना चाहिए? पहली कक्षा में पढ़े किसी बच्चे का अगली कक्षा में प्रवेश करने से पहले मुल्याँकन का अधिकार किसे होना चाहिए? असेम्बली लाइन पर कारीगर समय पर उपलब्ध ही ना हो, फेक्टरी का मालिक अपने घर की सब्जी लाने के लिए उस कारीगर को भेज दे तो क्या काम सही हो सकेगा? फिर क्यों शिक्षक को शिक्षण कार्य के अलावा अन्य, सरकार के घरेलू काम में लगाया जाता है? अरे राष्ट्रीय चरित्र का विकास करने का सपना दिखाने वालों कम से कम ये तो देखो कि उपभोक्ता बुद्धी ही समाज की लकवाग्रस्त हो गई है। व्यावसायिक लोगों के स्थान पर आपने लुटेरे बैठा रखे हैं जो कचरे के डिब्बे पैक कर के उस पर तरह तरह के उत्पादों के नाम का सर्टिफिकेट चिपका कर बेच रहे हैं।

सुरेश कुमार शर्मा 9929515246

How our education system work!

How our education system work!

कल्पना करिये, माता पिता के लिए अनिवार्य कर दिया जाए कि अपने नवजात बच्चे को चलना सिखाने के लिए उनको किसी विश्वविद्यालय से एक सर्टिफिकेट कोर्स करना अनिवार्य होगा... कारण... बिना सर्टिफिकेट के बच्चे को चलाने, बैठाने की कौशिश की और इस प्रयास में बच्चे का संतुलन बिगड़ने के कारण वह गिर जाता है तो वह बच्चे के प्रति क्रूरता मानी जाएगी, ये एक आपराधिक कृत्य है उन पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। ( डरता हूँ कि कोई सिरफिरा सत्ताधारी इसे पढ़कर सचमुच कानून ना बना दे)
... अब सोचिये सिलेबस क्या होगा? बच्चे के शरीर की भौतिक और रासायनिक बनावट, गति और स्थिति सम्बन्धी जटिल गणितीय सिद्धांत, कोणीय वेग, धरातल और सीढ़ियों की बनावट, गुरुत्वाकर्षण बल, अभिकेन्द्रीय और अपकेन्द्रीय बल की गणना...
.... क्या इरादा है बच्चे की सुरक्षा के लिए इतना सिलेबस पर्याप्त है? ना... वामपंथी और दक्षिण पंथी सब सड़क पर आ जाईए, आन्दोलन करिये, ABVP, NAUI, SFI चुप क्यों है? बिना सर्टिफिकेट के बच्चों को चलना सिखाना तो मानवाधिकार का ईश्यु बनता है। अन्तर्राष्ट्रीय सन्धी पत्रों पर हस्ताक्षर करिये, राष्ट्रों को बिल पास करने के लिए बाध्य करिये। मंत्रालय, परिषद और एसोसियेशन बनाओ।
कमोबेश यही हाल हमारे विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास व अन्य मानविकी विज्ञान का कर दिया गया है।
एक अनपढ़ मा जैसे अपने बच्चे को चलना सिखा लेती है वैसे ही एक व्यापारी का बेटा रातोंरात करोड़पति बन जाता है और अपने कारोबार सम्भालने के लिए सर्टीफाइड लोग कैम्पस में ढूँढता फिरता है।
फास्ट रीडिंग के जरिये जो कॉमन सेंस बच्चों को शिक्षा काल में मिलना चाहिए उसे स्पेशियेलाइजेशन के नाम पर ... अब क्या कहा जाए इसे मुर्खता कहा जाए या षड्यंत्र भगवान ही मालिक है इस देश की शिक्षा व्यवस्था का...


सुरेश कुमार शर्मा 9929515246

सफल जीवन के 25 लक्षण...

सफल जीवन के 25 लक्षण...


·         आपके जीवन में नाटकीयता नही है।
·         धन भले ही ना हो पर शान से जीवन जी रहे हैं।
·         मदद मांगते हुए संकोच नही करते।
·         जहाँ आप रहते हैं घर का सा अहसास होता है।
·         आपके जीवन के मानदण्ड हर दिन ऊँचे होते जा रहे हैं।
·         दुखी करने वाली बातों की आप परवाह नही करते।
·         शीशा देख कर आपने कभी खुद पर गर्व किया है।
·         आपको आत्मग्लानि नही है और आप हर दिन और अधिक सकारात्मक विचार से लबालब होते हैं।
·         आपने जान लिया है कि संकट और असफलता विकास के आवश्यक चरण है।
·         संकट के समय आपको किसी भी समय समाज सहायता को तैयार है।
·         मित्र, जीवन साथी और परिवार के सदस्य आपसे प्यार करते हैं।
·         जिसे आप बदल नही उसे स्वीकार कर लिया है और जो आपको मंजूर नही उसे बदलने के लिए संकल्प लिया है।
·         आप शिकायत नही करते बल्कि समाधान तलाशते हैं।
·         आप माता पिता को कोसते नही हैं, वे जैसे भी हैं उनका सम्मान करते हैं।
·         दूसरे क्या सोचते हैं इसकी परवाह करनी आपने बन्द कर दी है।
·         खर्चे बढ़ जाएं और चलते रहे तो प्रसन्न रहते हैं।
·         दूसरे की सफलता पर भी आप उत्सव मना सकते हैं।
·         आप अपने प्रति सम्वेदनशील हैं और दूसरे से अपनी भावनाएं बाँट सकते हैं।
·         आप अपनी धुन के पक्के हैं।
·         आप अपनी प्रशंसा स्वीकार कर लेते हैं।
·         जीवन में कुछ तो है जिसकी आपको परवाह है।
·         जीवन में कुछ लक्ष्य हासिल किये हैं और पाना चाहते हैं।
·         दूसरों से आपको सहानुभूति है।
·         आप अपने काम को समर्पित हैं।
·         आप दूसरों से प्यार करते हैं और लोगों से प्यार पाने के लिए खुले हैं।  
सुरेश कुमार शर्मा 9929515246

How our health system works...

( रसायन उद्योग के विकास में किये गये सारे प्रयास को आज स्वास्थ्य सेवा के नाम पर किया गया प्रयास कहा जाता है। )
कल्पना करें एक ऐसी दुनिया की जहाँ किसी तरह से जुग़ाड़ लगा कर सरकार की सहायता से निर्माता लोग घरों में दरवाजे के अन्दर का लॉक लगाना बैन कर दे। समय गुजरने के साथ ही लोग भूल जाएं कि दरवाजे के अन्दर का लॉक लगाया जाना सम्भव है। अब इस दुनिया में किस प्रकार की घटनाएं होंगी? सोचो... कोई चोर घर में घुसेगा, चोरियाँ बढ़ेगी तो सरकार अभियान चलाएगी... निहत्थे आने वाले चोरों से कैसे निपटें - ट्रेनिंग होगी, खास तरह के हथियार बिकेंगे, लड़ना सिखाया जाएगा। फिर, लाठी लेकर आने वाले चोरों से कैसे निपटें - ट्रेनिंग होगी, खास तरह के हथियार बिकेंगे, लड़ना सिखाया जाएगा। फिर, बन्दूक लेकर आने वाले चोर से कैसे निपटें - ट्रेनिंग होगी, खास तरह के हथियार बिकेंगे, लड़ना सिखाया जाएगा।
 जिन लोगों ने घर के अन्दर लॉक लगाना समाज को भुला दिया वे अब चोरों के प्रकार और उनसे निपटने के विभिन्न हथियारों और ट्रेनिंग पर खूब निवेश करेंगे और सरकार की चिंता में शामिल हो कर सच्चे दिल से समाज को सहयोग करेंगे ताकि समाज सुख से रह सके। अरबों का बिजनस होगा, खरबों के वारे न्यारे होंगे। चालाक व्यापारी चोरों को भी बढ़ावा देंगे और हथियार बनाने वालो के लिए भी धन मुहैया कराएंगे।
 अब अगर कोई सरकार को याद दिलाए कि इस उद्योग को बन्द क्यों नही करते... लोगों के घरों में अन्दर का ताला क्यों नही लगवाते ... क्यों जनता का सुख चैन छीन रखा है? उनके पसीने की गाढ़ी कमाई केवल चोरों से रखवाली पर खर्च हो रही है आप कुछ सोचते क्यों नही?
तो जिन लोगों के दरवाजे के खुले रहने में हित हैं वे लोग इस आवाज को कतई उभरने नही देंगे। वे चोरों के प्रकार, नये हथियार आदि पर इतना जोर से चिल्लाएंगे कि घर के अन्दर का ताला लगाने का कोमल स्वर द्ब कर रह जाएगा।
 वे लोग जिनके हित इस बात में है कि दरवाजे पर अन्दर से ताले ना लगने चाहिए... वे जब भी अन्दर से ताला लगाने की किसी भी योजना के समय घरों में घुस कर जानबूझ कर ऐसी वारदात को अंजाम देंगे कि झल्ला कर समाज, सरकार और उद्योगपेशंट मिल कर ताला लगाने के आइडिया पर निन्दा प्रस्ताव ले आएंगे।
 दोस्तों ! ये कल्पना चित्र मात्र कल्पना नही है, हकीकत में आपके साथ विश्वभर में किया जा रहा है...
रोग प्रतिरोधक शक्ति आपके स्वास्थ्य का आंतरिक लॉक है जिसके खिलाफ किसी भी वायरस, बैक्टीरिया और फंगस की औकात नही कि आपका स्वास्थ्य खराब हो जाए। विश्व स्वास्थ्य संगठन और सरकारों के स्वास्थ्य बजट जिससे लोगों की रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास होना चाहिए उस सारी धन शक्ति, समय, श्रम आदि का प्रयोग नित नये एंटी बैक्टीरिया, एंटी वायरस एंटी फंगस रसायन इजाद करने पर खर्च किया जा रहा है। रसायन उद्योग के विकास में किये गये सारे प्रयास को आज स्वास्थ्य सेवा के नाम पर किया गया प्रयास कहा जाता है।

How stupid we are?

घर फूँक तमाशा देखने की लत शराब पीने की लत से भी बुरी लत है। पर घर घर में आज ऐसा हो रहा है... किसी भी स्कूल में चले जाएं। आपके बच्चे सामुहिक नकल कर परीक्षा में नम्बर ला रहे हैं। शिक्षक दिखावे के लिए नाराज होते हैं। सोचो किसी व्यापारी की दुकान पर लोग खाली थैलियाँ लेकर उन पर वजन की पर्ची लगा कर घर ले जा रहा हो, सामान कुछ तोल कर देना ही ना पड़ॆ तो ? दुकानदार इस पागल ग्राहकों के नगर में दुकान खोलेगा या नही? अच्छे नम्बर की मार्कशीट ले कर बच्चे खुश, माँबाप खुश तो इसे घर फूँक तमाशा देखने की लत नही तो और क्या नाम दोगे?
जिम्मेदार तो वे है जो शिक्षा के उपभोक्ता है, परीक्षा के दिनों में होना तो ये चाहिए कि माँ बाप स्कूल जाकर बच्चों के और विद्यालय के पास बैठ कर सही तुलाई करा कर लाए...