वस्त्र हमारे जीवन की मूल भूत आवश्यकताओं में से एक है । इसके सम्यक उपयोग पर हमारा स्वास्थ्य, सामूहिक समृद्धि प्रत्यक्ष रूप से निर्भर करती है । अन्य दो मूल भूत आवश्यकताओं रोटी और मकान के सम्यक उपयोग के शिक्षण प्रशिक्षण की प्रथा दुनिया भर में प्रचलित है । वस्त्र के सही उपयोग के विषय में कहीं कोई व्यापक शोध और अनुसन्धान की जानकारियां संगठित और व्यवस्थित रूप से उपलब्ध नही है । वस्त्र के व्यावसायिक पक्ष पर तो अंतर्राष्ट्रीय उद्योग पति खूब काम कर रहे हैं । फैशन के बाजार में न्यूनतम लागत पर अधिकतम लाभ और स्त्रियों, बच्चों और युवाओं के भावात्मक शोषण हेतु बोले जाने वाले शब्द फैशन शो, फैशन टेक्नोलोजी प्रतिदिन कानों में गूँजते रह्ते हैं । परंतु वस्त्र और इसके विभिन्न पहलुओं का हमारे स्वास्थ्य से क्या सम्बन्ध है इस विषय में गम्भीर चिंतन का अभाव सा है ।
राजस्थान राज्य के चूरू शहर में भास्कर पराविद्या शोध संस्थान परिधान चिकित्सा के नाम से वस्त्रों पर एक शोध परियोजना चला रहा है । चिकित्सा व स्वास्थ्य क्षेत्र में वस्त्रों के विभिन्न ढंगों से उपयोग के चमत्कारिक परिणाम सामने आये हैं । परिधान चिकित्सा में वस्त्रों को औषधि रूप में काम में लिया जा रहा है । इस प्रकार की औषधियों को वस्त्रोषधियाँ कहा जाता है । वस्त्रोषधियों के उपयोग से मनुष्य की अनेक प्रकार की मनोशारीरिक बीमारियों का उपचार सम्भव है । इस चिकित्सा पद्दति में रोगी को वनस्पति और प्राकृतिक रंग आदि सामग्रियों से उपचारित वस्त्र धारण करने के लिए दिये जाते हैं ।
अनिन्द्रा, विभिन्न प्रकार के दर्द, आलस्य, अवसाद, विभिन्न प्रकार के भय, रोग प्रतिरोधक शक्ति में कमी, आत्मविश्वास में कमी, एकाग्रता की कमी आदि समस्याओं का सफलता पूर्वक निदान किया जाता है । वस्त्रोषधियों का उपयोग रोग की आवश्यकता और रोगी की सुविधा के अनुरूप भिन्न भिन्न ढंगों से अलग अलग अवधियों के लिए किया जाता है । ओढने-बिछाने के वस्त्र, दिन में पहनने के वस्त्र, रात को सोते समय पहनने के वस्त्र , कपड़े की बनी भिन्न भिन्न प्रकार की पट्टियाँ, रूमाल, पगड़ियाँ आदि रूपों में वस्त्रोषधियाँ दी जाती है । वस्त्रोषधियाँ तैयार करते समय रोगी का परीक्षण करने के पश्चात उसके लिए प्राकृतिक कपड़ा, जड़ी-बूँटियाँ, रंग, गन्ध, सामाजिक रूप से व्यवहार्य डिजाईन आदि का चुनाव किया जाता है । यहाँ तक कि पूरी चिकित्सा प्रक्रिया में औषधि तैयार करने वाले के व्यक्तिगत आचरण की भी बारिकी से परीक्षा की जाती है । प्राकृतिक रेशे जैसे सूती, ऊनी, रेशम, पटसन आदि का उपयोग करने में प्राथमिकता बरती जाती है पर चिकित्सा की आवश्यकता के अनुसार कई बार बाजार में सही वस्त्र न मिलने के कारण कृत्रिम रेशे के बने वस्त्रों का उपचार करके भी वस्त्रोषधियाँ तैयार की जाती है ।
परिधान चिकित्सा अपनी प्रारम्भिक अवस्था में एक प्रकार की सम्मोहन चिकित्सा थी । रंगों, अंकों, ज्यामिति आकार प्रकार, वस्त्रों में लगाये जा सकने वाले अन्य अलंकरणों के सम्बन्ध में परम्परागत मान्यताओं का उपयोग कर मानसिक रोगों पर वस्त्रों का उपयोग किया गया था ।
क्या त्वचा श्वसन को औषधि ग्रहण हेतु माध्यम बनाया जा सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर जानने हेतु दादी नानी द्वारा प्रयुक्त घरों में मिल सकने वाली साधारण एवं निरापद दवाओं यथा तुलसी, हल्दी, अजवाईन, मुलहटी, चन्दन, कपूर, पुदीना, ब्राह्मी, नीम, पीपल आदि के गुण धर्मों को ध्यान में रख कर बनियान, टोपी, पट्टियाँ आदि उपचारित कर रोगी को कुछ विशेष निर्देश दे कर रोगी को पहनने के लिए दिये गये । खाँसी, त्वचारोग, बच्चों के रोगों में इसके उत्साह जनक परिणाम मिले । दमा आदि रोगों में यह पद्दति एक पूरक चिकित्सा के रूप में प्रयुक्त हो सकती है । इसके परिणामों से उत्साहित हो कर इसके लिये एक शोध योजना बनाई गई ।
प्राचीन शास्त्रों में एक व्यवस्थित चिकित्सा पद्दति के रूप में इसके सूत्र खोजने के लिए प्रयत्न किये गये । ऋषि मुनियों के युग में साधना की दृष्टि से विभिन्न तरह के आसनों व शैयाओं के प्रयोगों के वर्णन मिलते हैं । मृगचर्म, सूत, कुश, ऊन आदि के गुणों के अनुसार आवश्यकतानुसार अलग अलग निर्देश उपलब्ध हैं । लोक परम्पराओं में मान्यता के रूप में इसके सूत्र प्राप्त हुए हैं । जच्चा बच्चा को हल्दी से उपचारित वस्त्र भेंट करना, आदिवासियों द्वारा रोगी के वस्त्रों को समस्या समाधान हेतु काम में लेना, चींटियों के बिल पर रखे वस्त्र को घावों के उपचार हेतु काम में लेना, ग्रामीण क्षेत्रों में बुरी आदतों के लिए बदनाम दर्जी के हाथ से बने वस्त्र बच्चों को नही पहनने देना आदि इसके उदाहरण हैं ।
राजघरानों की कहानियों में विषाक्त वेशभूषा का उपयोग ऐसे शत्रु को मारने के लिए है लिया जाता है जो जनता में मान्यता प्राप्त हो । ऐसे मित्र रूपी शत्रु को दरबार में राजकीय सम्मान के रूप में कपड़े पहनाये जाते हैं । विषाक्त वस्त्र जब त्वचा के सम्पर्क में आते हैं शत्रु घर पहूँचने से पहले ही समाप्त हो जाता है । विषोपचारित वस्त्रों से जीवन लिया जा सकता है तो औषधियों से उपचारित वस्त्रों से जीवन दिया भी जा सकता है । इन कथाओं से प्रेरित हो कर ऐसे रोगियों पर भी काम शुरू किया गया जो स्वयं उपचार नही करवाना चाहते पर पर परिवार के लोग रोगी के ईलाज में इच्छुक हैं । नशे की आदत, संतान हीनता, योन रोग आदि इसी श्रेणी के रोग हैं ।
इस शोध परियोजना के बीज वस्तुतः प्रसिद्ध गायत्री उपासक वेद मूर्ति पंडित श्री राम शर्मा द्वारा स्थापित गायत्री परिवार के वाङ्मय में उपलब्ध है । भास्कर पराविद्या शोध संस्थान के प्रमुख कार्यकर्ता सुरेश कुमार शर्मा के अनुसार पदार्थ और चेतना के पारस्परिक सम्बन्ध के अध्ययन के बगैर समस्त पद्धतियाँ अधूरी है । पदार्थ और चेतना के पारस्परिक सम्बन्ध के अध्ययन के लिये जितनी विपुल समाज को गायत्री परिवार ने उपलब्ध करवाई है उसकी मिसाल अन्यत्र देखने को नही मिलती । पं. श्री राम शर्मा से प्राप्त प्रेरणा और चिकित्सा से प्राप्त परिणामों का ही नतीजा है कि आज एक युवा टीम भास्कर पराविद्या शोध संस्थान के रूप में धीरे धीरे आकार लेने लगी है । देश के विभिन्न भागों में इस क्षेत्र में शोध करने के इच्छुक नागरिकों के लिए अब एक त्रैमासिक पाठ्यक्रम भी विकसित किया जा रहा है । फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र में काम करने वाले युवा इस विषय में विशेष रुचि ले रहे हैं । फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र से जुड़े व्यवसायियों की राय है कि परिधान से जुड़ कर समाज में एक अलग तरह की पहचान बनाई जा सकती है । स्वास्थ्य शिक्षा समाज की एक आवश्यक और आपातकालीन सेवा है । स्वास्थ्य शिक्षक को समाज में जो सम्मान मिल जाता है एक फैशन डिजाइनर को समाज में वह स्थान बनाने के लिये बहुत संघर्ष करना पड़ता है ।
नई दिल्ली में फैशन डिजाइनर से परिधान चिकित्सक बनी श्री मति प्रतिभा विज ने इस विषय का प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अपना महत्व पूर्ण स्थान बनाया है । उसने दिल्ली में इस विषय से जुड़ने के इच्छुक युवाओं के लिये आवश्यक जानकारियाँ देने हेतु एक सूचना और परामर्श केन्द्र खोला हुआ है । कैरियर परामर्श हेतु इच्छुक व्यक्ति प्रतिभा विज से निःशुल्क सम्पर्क कर सकता है । इनका पताः
प्रतिभा क्रियेशंस,
श्री मति प्रतिभा विज,
जे 9 / 11 (आई),
राजौरी गार्डन,
नई दिल्ली
फोन 41007574
Naina Sisodia- Designer from Jaipur
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