Do you want to be a real teacher?

" शिक्षक की भूमिका "
शिक्षक बुनियादी रुप से इस जगत में सबसे बड़ा विद्रोही व्यक्ति होना चाहिए । तब वह पीढ़ियों को आगे ले जायेगा । और शिक्षक सबसे बड़ा दकियानूस है, सबसे बड़ा ट्रेडीशनलिस्ट वही है, वही दोहराये जाता है पुराने कचरे को । क्रांति शिक्षक में होती नहीं है । आपने सुना है कि कोई शिक्षक क्रांतिपूर्ण हो ? शिक्षक सबसे ज्यादा दकियानूस, सबसे ज्यादा आर्थोडॉक्स है, इसलिए शिक्षक सबसे खतरनाक है । समाज उससे हित नहीं पाता है अहित पाता है ।
शिक्षक होना चाहिए विद्रोही.......
कौन-सा विद्रोही ?
मकान में आग लगा दें आप, या कुछ और कर दें या जाकर ट्रेन उलट दें या बसों में आग लगा दें, मैं उनको नहीं कह रहा हूँ, गलती से वैसा न समझ लें।
मैं कह रहा हूँ कि हमारी जो वैल्यूज हैं उनके बाबत विद्रोह का रुख, विचार का रुख होना चाहिए कि यह मामला क्या है ।
जब आप एक बच्चे को कहते हैं कि तुम गधे हो तुम नासमझ हो, तुम बुद्धिहीन हो, देखो उस दूसरे को, वह कितना आगे है, तब आप विचार करें कि यह कितने दूर तक ठीक है और कितने दूर तक सच है ।
क्या दुनिया में दो आदमी एक जैसे हो सकते हैं ?
क्या यह संभव है कि जिसको आप गधा कह रहे हैं वह वैसा हो जायेगा जैसा कि आगे खड़ा है ? 
क्या यह आज तक संभव है ?
हर आदमी जैसा है, अपने जैसा है, दूसरे आदमी से कंपेरीजन का कोई सवाल ही नहीं। किसी दूसरे आदमी से उसकी कोई कंपेरीजन नहीं उसकी कोई तुलना नही।
एक छोटा कंकड़ है, वह छोटा कंकड़ है, एक बड़ा कंकड़ है, वह बड़ा कंकड़ है, एक छोटा पौधा है, वह छोटा पौधा है, एक बड़ा पौधा है, वह बड़ा पौधा है ! एक घास का फूल है, वह घास का फूल है, एक गुलाब का फूल है, वह गुलाब का फूल है ! प्रकृति का जहां तक संबंध है, घास के फूल पर प्रकृति नाराज नहीं है और गुलाब के फूल पर प्रसन्न नहीं है । घास के फूल को भी प्राण देती है उतनी खुशी से जितनी गुलाब के फूल को देती है।
और मनुष्य को हटा दें तो घास के फूल और गुलाब के फूल में कौन छोटा कौन बड़ा है ? कोई छोटा और बड़ा नहीं है ! घास का तिनका और बड़ा भरी चीड़ का दरख्त तो यह महान है और घास का तिनका छोटा है ? तो परमात्मा कभी का घास के तिनके को समाप्त कर देता और चीड़-चीड़ के दरख्त रह जाते दुनिया में ! नहीं लेकिन आदमी की वैल्यूज गलत हैं।
यह आप स्मरण रखें कि इस संबंध में मैं आपसे कुछ गहरी बात कहने का विचार रखता हूं। वह यह कि जब तक दुनिया में हम एक आदमी को दूसरे आदमी से कंपेयर करेंगे तब तक हम गलत रास्ते पर चलते रहेंगे। वह गलत रास्ता यह होगा कि हम हर आदमी में दूसरे आदमी जैसा बनने कि इच्छा पैदा करते हैं, जब कि कोई आदमी न तो दूसरे जैसा बना है और न बन सकता है ।
राम को मरे कितने दिन हो गये, या क्राइस्ट को मरे कितने दिन हो गये, दूसरा क्राइस्ट क्यों नहीं बन पाता और हजारो हजारो क्रिश्चियन कोशिश में तो चौबीस घंटे लगे हैं कि क्राइस्ट बन जायें। हजारों राम बनने की कोशिश में हैं, हजारों जैन महावीर, बुद्ध बनने की कोशिश में हैं, लेकिन बनते क्यों नहीं एकाध ? एकाध दूसरा क्राइस्ट और दूसरा महावीर क्यों नहीं पैदा होता ? क्या इससे आंख नहीं खुल सकती आपकी ?
मैं रामलीला के रामों की बात नहीं कह रहा हूं, जो रामलीला में बनते हैं राम । न आप यह समझ लें कि उनकी चर्चा कर रह हूं। वैसे तो कई लोग राम बन जाते हैं, कई लोग बुद्ध जैसे कपडे लपेट लेते हैं और बुद्ध बन जाते हैं । कई लोग महावीर जैसा कपड़ा लपेट लेते हैं या नंगा हो जाते हैं और महावीर बन जाते हैं । मैं उनकी बात नहीं कर रहा। वे सब रामलीला के राम हैं, उनको छोड़ दें।
लेकिन राम कोई दूसरा पैदा होता है ? यह आपको ज़िन्दगी में भी पता चलता है कि ठीक एक आदमी जैसा दूसरा आदमी कोई हो सकता है ? एक कंकड़ जैसा दूसरा कंकड़ भी पूरी पृथ्वी पर खोजना कठिन है-यहां हर चीज यूनिक है और हर चीज अद्वितीय है ।
और जब तक हम प्रत्येक कि अद्वितीय प्रतिभा को सम्मान नहीं देंगे तब तक दुनिया में प्रतियोगिता, रहेगी प्रतिस्पर्धा रहेगी, तब तक मारकाट रहेगी, तब तक दुनिया में हिंसा रहेगी, तब तक दुनिया में सब बेईमानी के उपाय से आदमी आगे होना चाहेगा, दूसरे जैसा होना चाहेगा ।
जब हर आदमी दूसरे जैसा होना चाहता है तो क्या होता है ?
फल यह होता है अगर एक बगीचे में सब फूलों का दिमाग फिर जाये या बड़े बड़े शिक्षक वहां पहुंच जायें और उनको समझायें कि देखो चमेली का फूल चंपा जैसा हो जाये, और चंपा का फूल जूही जैसा, क्योंकि देखो जूही कितनी सुंदर है, और सब फूलों में पागलपन आ जाए, और चंपा का फूल जूही जैसा, क्योंकि देखो, जूही कितनी सुंदर है, और सब फूलों में पागलपन आ जाए, हालांकि आ नहीं सकता ! क्योंकि आदमी से पागल - फूल नहीं है। आदमी से ज्यादा जड़ता उनमें नहीं है कि वे चक्कर में पड जायें।
शिक्षकों के उपदेशकों के, संन्यासियों के आदर्शवादियों के, साधुओं के चक्कर में कोई फूल नहीं पड़ेगा । लेकिन फिर भी समझ लें और कल्पना कर लें कि कोई आदमी जाये और समझाए उनको तथा वे चक्कर में आ जायें और चमेली का फूल चंपा का फूल होने लगे तो क्या होगा उस बगिया में ?
उस बगिया में फूल फिर पैदा नहीं हो सकते, उस बगिया में फिर पौधे मुरझा जायेंगे । क्यों क्योंकि चंपा लाख उपाय करे तो चमेली तो नहीं हो सकती, वह उसके स्वाभाव में नही है, वह उसके व्यक्तित्व में नहीं है, वह उसकी प्रकृति में नहीं है। चमेली तो चंपा हो ही नहीं सकती।
लेकिन क्या होगा ? चमेली चंपा होन की कोशिश में चमेली भी नहीं हो पाएगी । वह जो हो सकती थी उससे भी वंचित हो जाएगी ।
मनुष्य के साथ यह दुर्भाग्य हुआ है। सबसे बड़ा दुर्भाग्य और अभिशाप जो मनुष्य के साथ हुआ है वह यह कि हर आदमी किसी और जैसा होना चाह रहा है और कौन सिखा रहा है यह ? यह षड्यंत्र कौन कर रहा है ?
यह हजार हजार साल से शिक्षा कर रही है। वह कह रही है राम जैसे बनो, बुद्ध जैसे बनो यह अगर पुरानी तस्वीर फीकी पड़ गयी, तो गांधी जैसे बनो, विनोबा जैसे बनो।
किसी न किसी जैसा बनो लेकिन अपने जैसा बनने की भूल कभी न करना क्योंकि तुम तो बेकार पैदा हुए हो। असल में तो गांधी मतलब से पैदा हुए। भगवान ने भूल की जो आपको पैदा किया। क्योंकि अगर भगवान समझदार होता तो राम और बुद्ध ऐसे कोई दस पंद्रह आदमी के टाइप पैदा कर देता दुनिया में। या कि बहुत ही समझदार होता, जैसा कि सभी धर्मो के लोग बहुत ही समझदार होते हैं, तो फिर एक ही तरह के टाइप पैदा कर देता। फिर क्या होता ?
अगर दुनिया में समझ लें कि तीन अरब राम ही राम हैं तो कितनी देर चलेगी दुनिया ? पंद्रह मिनट ने स्युसाइड हो जायेगा । साऱी दुनिया आत्मघात कर लेगी । इतनी बोरडम पैदा होगी राम ही को देखने से। सब मर जाएगा,
कभी सोचा है ? 
सारी दुनिया में गुलाब ही गुलाब के फूल हो जायें और सारे पौधे गुलाब के फूल पैदा करने लगें तो क्या होगा ? फूल देखने लायक भी नहीं रह जायेंगे । उनकी तरफ आंख करने कि भी जरुरत नहीं रह जाएगी । यह व्यर्थ नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति का पाना व्यक्तित्व होता है। यह गौरवशाली बात है कि आप किसी दूसरे जैसे नहीं हैं और कंपेरिज़न, कि कोई ऊंचा है कोई नीचा है, नासमझी कि बात है।
कोई ऊंचा और नीचा नहीं है-प्रत्येक है ! प्रत्येक व्यक्ति अपनी जगह है और प्रत्येक व्यक्ति दूसरा अपनी जगह पर। नीचे ऊंचे की बात गलत है। सब तरह का वैल्युएशन गलत है। लेकिन हम यह सिखाते रहे हैं।
विद्रोह से मेरा मतलब है, इस तरह की सारी बातों पर विचार, इस तरह की सारी बातों पर विवेक, इस तरह की एक एक बात को देखना की मैं क्या सिखा रहा हूं इन बच्चों को। जहर तो नहीं पिला रहा हूं ?

बड़े प्रेम से भी जहर पिलाया जा सकता है 
और बड़े प्रेम से मां-बाप और शिक्षक 
जहर पिलाते रहे हैं, 
लेकिन यह टूटना चाहिए। “ 
"Osho"