दुनिया में जिसे बाल शोषण, बाल श्रम के नाम से बदनाम किया गया है उस प्रणाली को बाल कौशल के नाम पर भारत में भी संरक्षण मिलना चाहिए। चीन की तरह उद्योगों और शिक्षण संस्थानों में साझेदारी होनी चाहिए। कार्य दशाएं चाहे वयस्क की हो चाहे बालक की अगर मानवीय सम्मान के अनुकूल नही है तो उसके लिए कड़े दण्ड के प्रावधान होने चाहिए। युरोप और अमेरिका की औद्योगिक नीति के भरोसे तो आज भी दुनिया उन साधनों से वंचित रहती जो ग्रामीण स्तर तक पहूँच गये हैं। क्या चीन सस्ती दर पर उत्पाद कर इंक्लूसिव ग्रोथ का काम नही कर रहा? उसकी खामियों पर सवाल उठाने से इंकार नही है पर पेटेण्ट और रॉयल्टी कानूनों की आड़ में पश्चिमी जगत तो नपुँसक बीज बेचने जा रहा है, उनकी तो इच्छा है कि उनकी मर्जी के बगैर कोई अपनी जमीन पर खेती भी ना करे।
अरे मनोविज्ञान बदलो भाई... दुनिया अपने आप बदल जाएगी।
अरे मनोविज्ञान बदलो भाई... दुनिया अपने आप बदल जाएगी।