बोर्ड और विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं में कॉपी के आखरी पन्ने पर छात्र से लिखवाया जाना चाहिए कि उसने कितने प्रतिशत अंक की अपेक्षा की है। साथ ही मुल्यांकन में उसे ± बताने की भी छूट मिले। अर्थात वह ये भी कहे कि मुल्यांकन के मतभेद के कारण कितने प्रतिशत अंक कम या अधिक हो सकते हैं। जब परीक्षक कॉपी जाँचे तो उसे उस उत्तरपुस्तिका की एक अनुमानित स्थिति का पता चल जाएगा। स्व मुल्याँकन को भी प्रोत्साहन मिलेगा। शिक्षक कॉपी जाँचते समय अपने मुल्याँकन का भी मुल्याँकन कर सकेगा कि कहीं लापरवाही, बेइमानी या बदले की भावना से मुल्याँकन कम या अधिक तो नही हो रहा है। सूचना के अधिकार और अदालतों के दखल की नोबत ही नही आएगी। वरना आज हर बोर्ड और विश्व विद्यालय की मुल्याँकन प्रणाली सवालों के घेरे में है। जनता भले ही अन्दर की बात नही जानती होगी पर शिक्षक और विद्यार्थी ये भली भाँती जानते हैं ...