मेरी राय में शिक्षा के उपभोक्ता अर्थात् विद्यार्थी और उसके लिए धन खर्च करने वाले अभिभावक के लिए किसी पोर्टल पर शिक्षाविदों, अधिकारियों से आवश्यक चर्चा की व्यवस्था नही होगी तो शिक्षा सुधार के सम्वाद चल पाना कठिन होगा। ये तो वैसे ही हुआ जैसे खिलाड़ी अभ्यास के लिए डमी के साथ खेल रहा हो। असली परीक्षा तो मैदान में होती है। स्कूलों का ढाँचा भी कमोबेश ऐसा ही है बच्चों की प्रश्न पूछने की क्षमता नष्ट कर दी जाती है, आज्ञा पालन की क्षमता की परीक्षा होती है। भला कोई क्रिकेटर अपने ही हाथ से उछाली गेन्द पर खेलता रहे तो उसे क्रिकेट मैच कहेंगे क्या? कोई पहलवान अगर अपने शिष्य से अपने ही बताए दाँव पर सुरक्षित खेले, जीते और शेखी बघारता रहे तो वह अपने शिष्य के साथ दगा ही कर रहा है। कक्षा में आज शिक्षक बच्चे के पूछे प्रश्न का जबाब देने की स्थिति में भी नही है। बस अखाड़े पर कब्जा जमाए बैठे हैं। हर शिष्य बाहर की दुनिया में फैल है। मजे की बात है कि सरकार इन पहलवानों को संरक्षण भी दे रही है...