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इस बसंत पंचमी से कुछ ख़ास सोचा जाये जो आपकी जिन्दगी बदल दे...
अवतार, तीर्थंकर और देवी देवता आपकी ही गोद में खेले हैं।
आदि शक्ति आदि पुरुष स्वरूप का स्मरण करें। आप पाप की संतान नही जिसको कयामत के दिन जजमेंट सुनाया जाएगा। आत्मदीपो भव सूत्र सनातन संस्कृति ने दिया है। पितृकुल के दिये हुए अपने दिव्य शरीर को आज भी याद है कि वाल्मीकि, राम, कृष्ण, सीता, राधा, हनुमान आदि अंशावतार या पूर्ण अवतार आपने ही जन्मे हैं। कभी आप कंस की जेल में प्रताड़ित देवकी वासुदेव रहे तो कभी राजा दशरथ और कौशल्या हुए, वाल्मीकि जैसे ऋषि को साधारण जन होकर जन्म दिया तो प्रतापी राजा होकर महावीर जैसे तीर्थंकर पैदा किये। मंदिर, आश्रम, तीर्थ जाएं तो अपनी गरिमामयी उपस्थिति से इन स्थानों को ऊर्जावान करें। उपनिषद का यह संदेश जन साधारण को अपने आचरण से समझाएं। एक साधारण प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के माता पिता अगर राष्ट्रपति भवन जाते हैं या प्रधानमंत्री आवास जाते हैं तो अपनी संतान पर गर्व करते हैं कि उनका पुत्र आज जगतप्रसिद्ध है। आप मंदिर जाएं तो गर्व करें कि आप ही की संतान आज जगत वंदनीय है। दीन दुःखी जो आज मंदिर आये हैं उनको वह परमसत्ता निराश नही करेगी जिसको कभी मैंने भी जन्म दिया था। अपने आचरण के साबित करें कि आप अपनी संतान के यश गौरव को और बढ़ाएंगे उसके काम में हाथ बंटाएंगे। ईश्वरीय सत्ता के काम में हाथ बंटाने का एक ही अर्थ है कि जो हमारे आस पास है उनकी गरिमा का स्मरण कराएं। उनकी आत्मिक शक्ति के विकास में सहयोगी हो भौतिक जीवन की समृद्धि में परस्पर सहयोग करें।
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स्वामी ध्यान दीवाना
पितृकुल
9929515246