सावधान ! मीडिया न शिक्षित करना चाहता है न मनोरंजन करना चाहता है

समाचारों के साथ शरारत करना, समाचारों की प्राथमिकता बदलकर सम्भव है। समाचारों के लक्षित हिस्से को जानबूझ कर आक्रामक ढ़ंग से पेश करना समाचारों के साथ शरारत करने का दूसरा ढंग है। मीडिया के जरिये यह बेशर्म हरकत सत्ता के प्यासे लोग करते हैं।

मीडिया और इंटरनेट से उम्मीद की जानी चाहिए कि यह घर घर शिक्षा पहुँचाए, अपनी बोर्डरलेस और बाउंड्रीलेस पहूँच से यह अकल्पनीय तरीके से कर सकता है। पर हालात इसके विपरीत है। अमेरिका में आज हर ग्रेजुएट पर 27000 डॉलर शिक्षा लोन है।

मीडिया और इंटरनेट से ओर्गेनाइज्ड सेक्टर तो भय, विरोध और फूहड़पन फैला रहा है।भूखे नंगों को टीवी पर नजारे दिखा कर छीन लेना इनके लिए वैसे ही है जैसे गली में बच्चे कुत्तों को रोटी ऊँची लटका कर उनसे नाचने का खेल देखते हैं।

फिर जब सैंकडों लोग इनको देखते हैं और आस करते हैं कि कुछ खाने को मिल जाए तो एक टुकड़ा फैंक कर उसके लिए उन भूखे नंगों को लड़ते देखना इनको अपार सुख से सरोबार कर देता है।
 
टेक्नोलोजी से जोड़कर नागरिकों से किस तरह की अपेक्षा की जा रही है अभी कहना मुश्किल है। एक छलावा पहले भी हुआ है... पहिये के आविषकार के समय कहा गया था कि ये हर भूखे तक अनाज पहुँचाएगा। पर रोटी चाहने वालों के लिए बारुद पहूँचता है।

पूँजीवादी नजरिये की इस सरकार से भारत की क्या तस्वीर बनती है ये तो भविष्य ही बताएगा। भारत में शिक्षित पैदा होंगे या शिक्षा के कर्जदार आगामी पाँच साल में यह तो समय ही बताएगा।

स्किल डवलपमेण्ट के जरिये 5-6 हजार रूपया महीने कमा सकने वाली मजदूरों की फोज खड़ी होगी या विवेक शक्ति के विकास के लिए विश्वविद्यालयों में स्वतंत्र चिंतन को भी प्रोत्साहन मिलेगा कहना मुश्किल है।