सनातन धर्म को आधुनिक युवा मन तक पहुंचाने के लिए शास्त्रों का युगानुकूल अनुवाद करना होगा। आइये एक उदाहरण से समझते हैं...
रामचरितमानस में सती जब शिव को देखती है कि वे वन में स्त्री के लिए विलाप करते राम को प्रणाम कर रहे हैं तो सती को भरोसा नही होता कि एक साधारण बिलखता युवक शिव के प्रणाम योग्य है।
सीता का रूप धर कर जब सती राम की परीक्षा लेती है तो शिव सती को साथ न बैठा कर सामने बैठाने लगते हैं क्यों कि उन्होंने गुरुपत्नी (सीता) का वेश धारण किया।
दाम्पत्य की इस दुविधा का अंत इस प्रकार हुआ कि सती बिना निमंत्रण के पिता के घर जाती है और पति के अपमान से आहत होकर वह यज्ञ शाला में अपने प्राण त्याग देती है। कथा है कि पार्वती रूप में 50000 वर्ष तपस्या करके वह शिव का पुनः वरण करती है।
बालकाण्ड के इस प्रसंग के निहित अर्थ आज की फास्टकुड़, यूज एंड थ्रो युवा पीढी को कैसे समझाओगे? आज के युवा तो स्कूल टीचर से शादियां तक करने लगे हैं।
दरअसल उस काल में पिता की पहचान उतनी कीमती न थी जितनी गुरु की थी। आज भी सिंगल मदर के सम्मान के लिए सरकार ने पिता के नाम की अनिवार्यता हटा दी। पर हर नागरिक को अपनी सांस्कृतिक विरासत कहां से मिली बताना तो होगा। समय बदल रहा है। अब भविष्य में स्त्रियों को अपनी सन्तान के गुरु का नाम बताना होगा।
अगला जन्म और 50000 वर्ष भी युवापीढ़ी के लिए बेसिरपैर की बात है। तो इंस्टेंट सॉल्यूशन क्या हो?
रामायण के इस रूपक को अब आधुनिक भाषा में ऐसे कहिए...
तकनीक आज इतनी विकसित हो चुकी है कि मानो कोई स्त्री अपनी सास के साथ ब्यूटीपार्लर में जाकर गर्दन एक्सचेंज करवा कर आ जाए, एक के धड़ पर दूसरी की गर्दन। तो बताइए घर पर बैठे पिता पुत्र का दाम्पत्य निर्वाह कैसे होगा? अब नई दशा में कौन स्त्री किस की पत्नी है? (दामाद और ससुर भी ऐसा कर सकते हैं)
यह पहेली हर उस व्यक्ति के लिए है जो अध्यात्म, पारलौकिक जगत, मल्टीपल डाइमेंशन ऑफ एग्जिस्टेन्स आदि के संदर्भ में चेतना विकसित करना चाहता है। पृथ्वी पर प्रजनन पर्यावरण और योन व्यवहार की सम्यक अनुभूति बिना जीवन चक्र से मुक्ति सम्भव नही है। अच्छे बुरे कर्मभोगों के लिए उसे इसी गुरुत्वीय क्षेत्र में बारबार जन्म लेना होता है। इस द्वंद्वात्मक अस्तित्व से मुक्ति सहज भी है और कठिन भी।
रामायण चेतना के विकास का शुद्ध विज्ञान है।
सुरेश 9929515246
रामचरितमानस में सती जब शिव को देखती है कि वे वन में स्त्री के लिए विलाप करते राम को प्रणाम कर रहे हैं तो सती को भरोसा नही होता कि एक साधारण बिलखता युवक शिव के प्रणाम योग्य है।
सीता का रूप धर कर जब सती राम की परीक्षा लेती है तो शिव सती को साथ न बैठा कर सामने बैठाने लगते हैं क्यों कि उन्होंने गुरुपत्नी (सीता) का वेश धारण किया।
दाम्पत्य की इस दुविधा का अंत इस प्रकार हुआ कि सती बिना निमंत्रण के पिता के घर जाती है और पति के अपमान से आहत होकर वह यज्ञ शाला में अपने प्राण त्याग देती है। कथा है कि पार्वती रूप में 50000 वर्ष तपस्या करके वह शिव का पुनः वरण करती है।
बालकाण्ड के इस प्रसंग के निहित अर्थ आज की फास्टकुड़, यूज एंड थ्रो युवा पीढी को कैसे समझाओगे? आज के युवा तो स्कूल टीचर से शादियां तक करने लगे हैं।
दरअसल उस काल में पिता की पहचान उतनी कीमती न थी जितनी गुरु की थी। आज भी सिंगल मदर के सम्मान के लिए सरकार ने पिता के नाम की अनिवार्यता हटा दी। पर हर नागरिक को अपनी सांस्कृतिक विरासत कहां से मिली बताना तो होगा। समय बदल रहा है। अब भविष्य में स्त्रियों को अपनी सन्तान के गुरु का नाम बताना होगा।
अगला जन्म और 50000 वर्ष भी युवापीढ़ी के लिए बेसिरपैर की बात है। तो इंस्टेंट सॉल्यूशन क्या हो?
रामायण के इस रूपक को अब आधुनिक भाषा में ऐसे कहिए...
तकनीक आज इतनी विकसित हो चुकी है कि मानो कोई स्त्री अपनी सास के साथ ब्यूटीपार्लर में जाकर गर्दन एक्सचेंज करवा कर आ जाए, एक के धड़ पर दूसरी की गर्दन। तो बताइए घर पर बैठे पिता पुत्र का दाम्पत्य निर्वाह कैसे होगा? अब नई दशा में कौन स्त्री किस की पत्नी है? (दामाद और ससुर भी ऐसा कर सकते हैं)
यह पहेली हर उस व्यक्ति के लिए है जो अध्यात्म, पारलौकिक जगत, मल्टीपल डाइमेंशन ऑफ एग्जिस्टेन्स आदि के संदर्भ में चेतना विकसित करना चाहता है। पृथ्वी पर प्रजनन पर्यावरण और योन व्यवहार की सम्यक अनुभूति बिना जीवन चक्र से मुक्ति सम्भव नही है। अच्छे बुरे कर्मभोगों के लिए उसे इसी गुरुत्वीय क्षेत्र में बारबार जन्म लेना होता है। इस द्वंद्वात्मक अस्तित्व से मुक्ति सहज भी है और कठिन भी।
रामायण चेतना के विकास का शुद्ध विज्ञान है।
सुरेश 9929515246