भारत के सरकारी शिक्षण ढांचे में ट्रांसफर उद्योग दीमक का काम कर रहा है। न शिक्षक शिक्षण में रुचि दिखा रहे ना प्रशासक इस चिंता में कि कक्षाएं ठीक से कैसे चले। जानबूझ कर किसी शिक्षक को घर से दूर नियुक्ति देना, रिश्वत लेकर उसे वापस घर के नजदीक लगाना, पर्दे के पीछे का खेल सब खेल रहे हैं। राजनैतिक मित्रता शत्रुता निभाने के लिए भी ये एक अच्छा खेल है।
ऐसे में एक युक्ति संगत उपाय क्या हो सकता है?
मेरा सुझाव है किए एक डिजिटल प्रणाली विकसित की जाए जिसमें हर विद्यालय के छात्र, अभिभावक, नागरिक एक पैड SMS के जरिये शिक्षक का चुनाव कर सकें। रिंग टोन, टीवी के विभिन्न कार्यक्रमों में राय शुमारी के लिए ये तरीका अपनाया जाता है।
शिक्षा विभाग की आय का भी ये एक बेहतर जरिया हो सकता है। जिनकी शिक्षा में रुचि है वे एस एम एस के जरिये इस प्रकार से धन से भी सहयोग कर सकते हैं।
अब प्रश्न फर्जी और प्रायोजित एस एम एस का है...
सबसे पहले छात्र-अभिभावक के वोट का अधिक भार नियत किया जाए क्यों कि वे विद्यालय के सीधे हितकारी है। अन्य सामान्य नागरिकों के एस एम एस वोट का मूल्य छात्र-अभिभावक से कम रखा जाए परंतु उनका कुल भार छात्र-अभिभावक से अधिक हो जाए तो फिर छात्र-अभिभावक की राय के विपरीत भी शिक्षक की नियुक्ति की जा सकती है।
शिक्षक अपनी रुचि के स्थान पर लोकप्रियता बनाए रखने के लिए मन लगा कर काम करेंगे।
अवैध एस एम एस से भी कोई आपति नही होनी चाहिए। शिक्षक अपना धन खर्च कर के भी किसी स्थान पर स्थानांतरण के लिए एस एम एस करता है तो वह अपने वेतन के त्याग के बदले वह पद हासिल कर रहा है।