*पितृकुल की दृष्टि से वास्तु विचार* 🙏🙏

 🕉️🕉️

🏚️एक सुखद जीवन के लिए सुंदर और सुविधा युक्त भवन सब का सपना होता है। 

🏠 कुछ बिना भवन के ही शानदार जीवन जी रहे हैं, कुछ किराए के मकान से दुखी है, कुछ चौकीदार के रूप में हवेलियां संभाल कर खुश है तो कोई फार्म हाउस का मालिक हो कर भी बेचैन है। 

🏠 पितृकुल की दृष्टि से भवन और उससे प्राप्त सुविधाओं या कष्टों का विचार करें तो एक बात ठोकरें खाते खाते समझ जाओगे या आप श्रद्धा से जानते हैं कि केवल ईंट सीमेंट से बने स्थूल ढांचे को भवन कहने की भूल न करें।

🏠 आप वास्तु पुरुष के अभिन्न अंग हैं जो आपके भौतिक आवास के कण कण को घेरे हुए है और हर पल आपको सुख सुविधाएं देने के लिए व्याकुल रहता है और आप उसका जाने अंजाने में तिरस्कार करते हैं।

🏠 इस तिरस्कार को सहते हुए भी जब आपको वह दुखी देखता है, संकट में देखता है तो भी हर संभव सहायक होना चाहता है।

🏠 जो व्यक्ति सपनों का भवन पाना चाहता है या पाए हुए है और वास्तु कारणों से असंतुष्ट है उसको अपना आचरण विचार करना चाहिए।

🏠 वास्तु शुद्ध भवन होते हुए भी अगर आप संकट में हैं तो जान लीजिए कि आप अपने घर में साफ सफाई और व्यवस्था प्रेम पूर्ण होकर नही कर रहे। यह ऐसे ही है जैसे अपने माता पिता या संतान को पैसे के बल पर नौकरों के भरोसे छोड़ कर अपेक्षा करते हैं कि बच्चे चीखे चिल्लाए नही, बुजुर्ग दुखी और रोगी न रहें। पर क्या आपकी उपेक्षा पा कर आपसे वे प्रेम कर पाएंगे? 

🏠 अपने घर के लिए आप स्वयं प्रेम पूर्ण व्यवहार रखें और घर की वस्तुओं को ज्यामितीय ढंग से करीने से सजा कर रखें। 

🏠 वास्तु सिद्धांत के अनुसार जमीन कटी फटी है तो यह आपके पितृ संस्कार है कि आप ऐसी जमीन पर रह रहे हैं। *(इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह जमीन आपकी मल्कीयत है, किराए पर रहते हो या चौकीदारी कर रहे हो)*

🏠 मान लीजिए माता-पिता में से कोई जन्मजात विकलांग है और आप उनकी संतान है अथवा आपके घर में कोई विकलांग संतान पैदा हुई है। ऐसे में आप उसके साथ क्या व्यवहार करोगे? 

🏠 वास्तु पुरुष की यह विकलांगता आपके अर्जित संस्कारों के कारण है। परंतु फिर भी समझदार माता-पिता अथवा संतान यह चाहेंगे कि विकलांगता है तो क्या हुआ हम विशेष सावधानी रखते हुए अपने माता-पिता अथवा संतान को ऐसे लोगों से भी श्रेष्ठ बनाएंगे जो पूर्ण आंगिक विकास के साथ जन्मे हैं। 

🏠 श्रद्धा और विश्वास के साथ आप अपने भवन में रहते हैं और भवन के कटे फटे अंग को विशेष केयर करते हो जैसे किसी अंधे व्यक्ति को रास्ता दिखाना अथवा लंगड़े व्यक्ति को चलने में सहायता करना, इस प्रकार से पूरे भवन को साफ सुंदर और व्यवस्थित रखते हुए उपचार कर देते हैं तो शीघ्र ही वास्तु विकलांगता दूर हो जाएगी और आप अपने पसंद के वास्तु पुरुष का शुद्ध स्वरूप पा लेंगे। 

🏠 किराए पर रहने वाले, चौकीदारी के नाम पर घर संभालने वाले लोगों को यह सोच कर भवन कर उपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि यह मेरा भवन नही है। 

🏠 जिस प्रकार संतानहीन दंपत्ति अपने कर्म भोग के कारण संतान नहीं पाते इस प्रकार कर्म भोग के कारण हो सकता है कि आपके जीवन में आपके स्वामित्व का मकान देरी से बनना लिखा हो। 

🏠 पितृ कुल की दृष्टि से वास्तु विचार भी एक अत्यंत गंभीर विषय है। व्यक्तिगत विचार विमर्श के समय ऐसी चर्चाएं हम लोग अक्सर करते रहते हैं। (आरंभिक परिचय के लिए यह सार्वजनिक पोस्ट लिखा गया है)

🏠 वास्तु पुरुष को अपने अग्रज पूर्वज के रूप में सम्मान दें। आशीर्वाद युक्त जीवन जीएं।

🙏🙏

*स्वामी ध्यान दीवाना 9929515246*


*पितृकुल -  Connecting people across the globe.*


सनातन शिक्षा प्रणाली का आधुनिक रूपांतरण क्या हो सकता है?

🕉️🕉️ 🙏🙏 एक उदाहरण से समझते हैं: 👉 प्रत्येक विश्वविद्यालय MBA की डिग्री किसी बच्चे को तभी प्रदान करता है जब वह अपनी क्षमता से 10 लाख रुपए की आमदनी कर ले। 👉 इस लक्ष्य को पाने के लिए उसके पास सोशल स्किल और सर्वाइवल स्किल होने चाहिए। 👉 अगर किसी बच्चे में सोशल स्किल और सर्वाइवल स्किल नहीं है तो टेक्नोलॉजी का डेवलपमेंट और सैद्धांतिक ज्ञान व्यर्थ है। 👉 एमबीए की डिग्री पाने के लिए उसे अब अपने आसपास युवा वर्ग में पहचान करनी होगी कि कौन व्यक्ति किस प्रकार की सेवा दे सकता है अथवा क्या उत्पादन कर सकता है जिसका समाज में कोई मूल्य हो। 👉 दूसरी तरफ उसे समाज की ऐसी समस्याओं को पहचानना होगा जिन समस्याओं के समाधान उसके पास अथवा उसकी युवा टीम के पास उपलब्ध है। उसे समाज की ऐसी आवश्यकताओं को भी पहचानना होगा जिनकी पूर्ति वह किसी उत्पाद से अथवा सेवा से वह स्वयं कर सके या अपनी टीम से करवा सके । 👉 डिग्री पाना उसके लिए जीवन की अनिवार्य प्यास है तो उसे प्रैक्टिकल शिक्षा के रूप में सेल्फ असेसमेंट, म्यूचुअल असेसमेंट, सोशल असेसमेंट से गुजरना होगा। 👉माता पिता को अपने बच्चे के विकास के लिए मूल्यांकन का यह ढंग अपनाना ही होगा। 👉 प्राचीन समय में शिक्षा प्राप्त करके विश्वविद्यालय से निकलकर एक ब्रह्मचारी राजा महाराजा के पास जाकर कहता है कि मुझे अपने गुरु को 100000 स्वर्ण मुद्राएं गुरु दक्षिणा देनी है। ऐसे समर्थ ब्रह्मचारी को राजा परीक्षा लेकर जांचता है कि क्या वह इस योग्य है कि अपने गुरु को 100000 स्वर्ण मुद्राएं दे सके 👉 भगवान श्री कृष्ण राज सूययज्ञ में पत्तल उठाने का काम करते हैं। कृष्ण जैसा विराट व्यक्तित्व वाला व्यक्ति जिसे पूर्णअवतार की संज्ञा दी जाती है पत्तल उठना है तो इसका अर्थ समझने की आवश्यकता है। 👉 रिसर्च एंड डेवलपमेंट में लगे हुए बच्चों को समझना चाहिए कि शारीरिक श्रम मानसिक परिश्रम के साथ-साथ अनिवार्य है। सर्वाइवल स्किल के बिना और सोशल स्किल के बिना सैद्धांतिक और तकनिकी विकास व्यर्थ है। 🙏🙏 स्वामी ध्यान दीवाना 9929515246 🕉️🕉️